जिनेन्द्र भक्ति संग्रह (भाग-१)
जिनेन्द्र भक्ति में अनंत शक्ति है ,आज जितने भी जीव सिद्ध हुए है ,उन सभी ने पूर्व भवों में खूब भक्ति की है |
इसमें सर्वप्रथम अनादिनिधन णमोकार मन्त्र चत्तारि मंगलपाठ को शुद्ध उच्चारण के बारे में बताते हुए, भगवान ऋषभदेव के दशावतार गर्भित संस्कृत में स्तुति दी हैं ,पश्चात कुन्दकुन्द विरचित प्राकृत पंचमहा गुरु भक्ति का पद्यानुवाद दिया है पुन: पंचपरमेष्ठी स्तोत्र के पांच अलग-अलग स्तोत्र द्वारा वन्दना की हैं |
इस पुस्तकमें 28 तरह के स्तोत्र का संग्रह किया हैं ,जिसमें सोलहकारण, दशलक्षण,रत्नत्रय ,ढाईद्वीप समवसरण,कृत्रिम जिनालय ,सिद्धशिला आदि स्तोत्रों को रचकर हमसभी को प्रदान किया हैं |
हमसभी पूज्य माताजी के बहुत आभारी है और उनके चरणों में त्रिबारवन्दामीकरते हैं