Jain Dharma and Lord Rishabhdev
Jain Dharm & Lord Risha… by Jambudweep Jain
Jain Dharm & Lord Risha… by Jambudweep Jain
स्वाध्याय को परम तप माना गया है | परम पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिकारत्न श्री चंदनामती माताजी एक सिद्धहस्त लेखिका हैं | महान गुरु की उन महान शिष्या ने अपनी गुरुमाता से चारों अनुयोगों का ज्ञान प्राप्त कर समय- समय पर अनेक आलेख लिखे जिसका सुन्दर समन्वय जिनधर्मामृत के रूप में आपके समक्ष है | माला में पिरोये एक-एक मोती की तरह अत्यंत सुन्दर और महत्वपूर्ण इस ग्रन्थ में १९ विषयों का समावेश है जिसके माध्यम से चारों अनुयोगों का ज्ञान आधुनिक भाषाशैली में प्राप्त किया जा सकता है | ऐसे महान ग्रन्थ की प्रदात्री पूज्य माताजी को कोटि-कोटि वंदन |
अनादि काल से सभी संसारी प्राणी चौरासी लाख योनियों में परिभ्रमण करते आ रहे हैं। 84 लाख योनि के परिभ्रमण से छूटने के लिए पूज्य गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमति माताजी ने 84 लाख योनि निवारण व्रत बनाया है इस व्रत को करने से दुखों से छुटकारा पा सकते हैं लघु रूप में इसमें 14 व्रत एवं वृहद रूप में 84 व्रत है।
इस व्रत को आप करके अपने जीवन को धन्य करें यही मंगल भावना है।अनादि काल से सभी संसारी प्राणी चौरासी लाख योनियों में परिभ्रमण करते आ रहे हैं। 84 लाख योनि के परिभ्रमण से छूटने के लिए पूज्य गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमति माताजी ने 84 लाख योनि निवारण व्रत बनाया है इस व्रत को करने से दुखों से छुटकारा पा सकते हैं लघु रूप में इसमें 14 व्रत एवं वृहद रूप में 84 व्रत है।
इस व्रत को आप करके अपने जीवन को धन्य करें यही मंगल भावना है।
“तीर्यते संसार येन असौ तीर्थ:” जिससे संसार समुद्र तिरा जाए, उसे तीर्थ कहते हैं, शास्वत तीर्थ दो हैं- अयोध्या और सम्मेद शिखर।
इसके अतिरिक्त जहां तीर्थंकर भगवंतों के गर्भ, दीक्षा व केवल ज्ञान कल्याणक हुए अथवा जहां से अन्य विशेष महापुरुष सिद्ध हुए या जहां पर तीर्थंकर प्रतिमाओं का कोई विशेष चमत्कार हुआ वह सभी तीर्थ संज्ञा से सुशोभित है।
ऐसे ही महाराष्ट्र प्रांत में लगभग 44 तीर्थ हैं जिनका सिरमौर्य मांगीतुंगी जी है जहां भगवान आदिनाथ की अखंड पाषाण में 108 फुट विश्व की सबसे ऊंची एकमात्र प्रतिमा विराजमान है
परमपूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामति माताजी द्वारा रचित महाराष्ट्र के समस्त तीर्थों की वंदना (महाराष्ट्र तीर्थक्षेत्र विधान) के माध्यम से कर सकते हैं
यह विधान सबके लिए मंगलमय हो
हम प्रतिदिन भगवान का अभिषेक एवं पूजन करते हैं उसके लिए सर्वप्रथम क्या विधि करना चाहिए यह हमें ज्ञात नहीं रहता
इस उद्देश को लेकर पूज्य माता जी द्वारा यह छोटी सी पुस्तक तैयार की गई है जिसमें सर्वप्रथम मंगलाष्टक पश्चात भगवान का पंचामृत अभिषेक पाठ संस्कृत एवं हिंदी में दिया है और 5 भाषाओं में (हिंदी अंग्रेजी संस्कृत मराठी गुजराती) नव देवता पूजा का संकलन किया है अर्घ्य एवं पूजा प्रारंभ एवं अंत विधि को भी प्रकाशित किया है
यह पुस्तक हम ज्ञानियों के लिए बहुत ही लाभप्रद है
आचार्य पुष्पदंत -भूतबली विरचित षट्खंडागम ग्रंथ की संस्कृत भाषा में “सिद्धांत चिंतामणि टीका” गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा की गई है ।इस नवमी पुस्तक में षट्खंडागम के चतुर्थ खंड वेदनाखंड के अंतर्गत कृति अनुयोगद्वार का वर्णन है, साथ ही कृति के सात भेदों को भी बताया गया है और इसमें गौतम स्वामी द्वारा रचित गणधरवलय के 44 मंत्र एवं भक्तामर स्तोत्र के 48 ऋध्दि मंत्रों का भी समावेश किया गया है एवं साधु के 28 कृतिकर्मों का बहुत ही सुंदर वर्णन इसमें है ।
सिद्धांत ग्रंथ का स्वाध्याय कब करना और कब नहीं करना और उनसे होने वाले लाभ और हानि के बारे में बहुत महत्वपूर्ण वर्णन किया गया है। इस पुस्तक में कुल 76 सूत्र है ।इस ग्रंथ का स्वाध्याय हम सभी के सम्यग्ज्ञान की वृद्धि करें ,यही मंगल भावना है।
संस्कृत भाषा अति प्राचीन भाषा है जिसका ज्ञान प्राप्त करना आज लोगों को कठिन लगता है किन्तु अत्यंत सरल भाषा में संस्कृत की शिक्षा प्रदान करने के लिए इस पुस्तक का लेखन किया गया है | इसमें स्वर, व्यंजन, संधि आदि को बताया है |
साहित्य रचना में जिस पकार रस , अलंकार , व्याकरण आदि आवश्यक अंग होते हैं उसी प्रकार छंद शास्त्र का भी महत्वपूर्ण स्थान है |जैसे कोई स्त्री सुन्दर वस्त्रालंकारों से सुसज्जित होते हुए भी बेडौल है तो उसे अलंकार शोभित नहीं कर सकते हैं उसी प्रकार छंद के बिना साहित्य रचना हमें अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकती अतः छंदशास्त्र का ज्ञान अत्यावश्यक है | कविवर वृन्दावन रचित इस पुस्तक में १०० प्रकार के छंदों का वर्णन है , इसमें छंद के लक्षण में ही छंद के नाम सन्निहित है |
जैसे एक माला में बहुत से फूल होते हैं उसी प्रकार इस पुस्तक में वस्तु के अनेक नाम बतलाने वाले २०० श्लोक हैं अतः इसे नाममाला कहा गया है | इसकी रचना महाकवि धनञ्जय ने की है अतएव इसका धनञ्जय नाममाला नाम सार्थक है | किसी भी ग्रन्थ रचना में एक ही शब्द को बार बार लेने से उसमें वह लालित्य नहीं आ पाता और अगर हम एक शब्द के अलग-अलग नाम देवें तो उस रचना में चार चाँद लग जाते हैं इसलिए ग्रन्थ रचना की सुंदरता के लिए इस पुस्तक का ज्ञान होना अति आवश्यक है |