नवग्रहशांति विधान (लघु)
नवग्रह शांति स्तोत्र एवं नवग्रह विधान करने की परम्परा जैन परम्परा में काफी समय से चली आ रही है | मनुष्य जिस समय माँ के गर्भ से उत्पन्न होता है उसी समय उसकी जन्मतिथि के साथ – साथ समय, ग्रह, सूर्य ,चंद्रमा , नक्षत्र , योग आदि से जन्मकुंडली बतलाई जाती है |
कुंडली में स्थित ग्रह, नक्षत्र के अनुसार ज्योतिषी द्वारा बताए गए शुभ-अशुभ फल के अनुसार प्राणी तरह-तरह से उसके निवारण हेतु उपाय करते हैं | यद्यपि ये ग्रह आदि किसी का कुछ नहीं बिगाड़ते , फिर भी सुख- दुःख में निमित्त बन जाते हैं |
जैन सिद्धांत में यूं तो कर्म की प्रधानता है फिर भी संसारी प्राणी के ग्रहादि कष्ट से घबराने पर गुरुजन अरिष्टनिवारण हेतु भगवंतों की भक्ति की प्रेरणा देते हैं | उन्हीं ग्रहों की शांति हेतु पूज्य चंदनामती माताजी ने गुरु प्रेरणा से नवग्रहशांति विधान की रचना की जिसके और छोटे रूप की मांग आने पर माताजी ने १५-२० मिनट में इसे करने हेतु इस लघु पुस्तिका की रचना की है जिसे करने से आप अपने ग्रहों की शांति करके सर्व सांसारिक अभ्युदय को प्राप्त करें |