वीर नि. सं. २५०९ , सन् १९८३ में यह पुस्तक लिखी गयी | भगवान आदिनाथ (ऋषभदेव ) के ज्येष्ठ पुत्र भरत जिनके नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा , जो कि इस युग के प्रथम चकवर्ती सम्राट हुए एवं अंत में दैगम्बरी दीक्षा धारण कर मोक्ष प्राप्त किया , उनके जीवन की प्रमुख घटनाएं को इस उपन्यास में दर्शाया गया है |
इसके प्रथम भाग की श्रंखला में और आगे का ज्ञान अर्जन कराने के लिए दूसरे भाग का प्रकाशन हुआ | इस भाग में चत्तारि मंगल से प्रारम्भ करके भगवान तक २९ पाठों में जैनधर्म के विभिन्न विषयों का ज्ञान समाविष्ट किया गया है | इसका भी अंग्रेजी अनुवाद श्री जिनेन्द्र प्रसाद जैन ठेकेदार ने किया है जो कि प्रकाशित हो चुका है |