बालकों को जैनधर्म का प्रारंभिक ज्ञान अर्जित कराने के लक्ष्य से पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने सन् १९७४ में ‘ बाल विकास ‘ नाम से ४ भाग लिखे हैं | उनमें से प्रथम भाग में अनादिनिधन णमोकार महामंत्र से प्रारम्भ करके मन्त्र की महिमा , मन्त्र के अपमान का कुफल , चौबीस तीर्थंकरों के नाम और चिन्ह , देवदर्शन की विधि आदि के १४ पाठ इस बाल विकास में दिए गए हैं | यथास्थान सभी पाठों के चित्र होने से बच्चों को शीघ्रता से पाठ का अभिप्राय समझ में आ जाता है | इसका अंग्रेजी अनुवाद श्री जिनेन्द्रप्रसाद ‘ ठेकेदार ‘ – दिल्ली ने किया है , जो कि छप चुका है |
भगवान पार्श्वनाथ तृतीय सहस्राब्दि महोत्सव वर्ष के अंतर्गत भगवान महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर में वीर नि. सं. २५३० , सन् २००४ में पूज्य माताजी ने यह पुस्तक लिखकर तैयार की |
इस पुस्तक में भगवान पार्श्वनाथ का परिचय एवं उनके दश भवों का वर्णन है | इसके साथ ही तीर्थंकर जन्मभूमियों के विकास की आवश्यकता , तीर्थंकर जन्मभूमि वंदना भी लिखी है |
बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज के १३१वें संयम वर्ष [२००३-२००४ ] के अवसर पर इस पुस्तक का प्रकाशन हुआ | इसमें महाराज के जीवन चरित का वर्णन है , जिन्होंने बीसवीं सदी में जन्म लेकर धरती के लुप्तप्राय हो रही मुनि परम्परा को पुनर्जीवित किया था तथा जिन्होंने वास्तव में शान्ति के सागर बनकर समस्त प्राणियों को शान्ति का उपदेश प्रदान प्रदान किया था |