इसके दो भागों की श्रंखला को आगे बढाते हुए बाल विकास का तीसरा भाग प्रकाशित किया गया | इस ६४ पृष्ठीय बालविकास भाग तीन में छः द्रव्य , सात तत्व ,नौ पदार्थ , सम्यग्दर्शन , मिथ्यादर्शन , सप्त व्यसन , कर्मास्रव के कारण आदि १९ पाठ हैं | इसे पढकर जैनधर्म के अच्छे ज्ञाता बन सकते हैं |
भगवान ऋषभदेव के परम पावन जीवनवृत्त को प्रदर्शित करने वाले इस नाटक का प्रकाशन हस्तिनापुर में संपन्न हुए , जम्बूद्वीप रचना के पंचकल्याणक महोत्सव के शुभ अवसर पर किया गया |
ज्ञानार्जन की श्रेणी को आगे बढाते हुए इस चौथे भाग का प्रकाशन किया गया | इस बाल विकास भाग – ४ में पूज्य माताजी ने पञ्च परमेष्ठी के मूलगुणों से लेकर श्रावक के पाँच अणुव्रत , १२ व्रत , ११ प्रतिमा , ध्यान , गुणस्थान आदि का वर्णन गोम्मटसार के आधार से दिया है |
इन चारों भागों को पढकर कोई भी विद्यार्थी / पाठक जैनधर्म के अच्छे ज्ञाता बन सकते हैं | बाल विकास के चारों भाग कन्नड़ , मराठी , गुजराती , तमिल भाषा भी छप चुके हैं जो कि वर्तमान में अनुपलब्ध हैं |
दिल्ली पहाड़ी धीरज पर वीर नि. सं. २४९८ ( सन् १९७२ ) के चातुर्मास में करणानुयोग से सम्बंधित ग्रन्थ ” त्रिलोक भास्कर ” लिखा गया | वैसे तो तीन लोक का विस्तृत वर्णन तिलोयपण्णत्ति , त्रिलोकसार , लोक विभाग आदि अनेक ग्रंथों में पूर्वाचार्यों ने किया है किन्तु सुगमता की द्रष्टि से पूज्य माताजी ने सरल हिन्दी में उन्हीं ग्रंथों का सार इसमें लिया है | यथास्थान चार्ट एवं चित्रों को देकर इसे विशेष रूप से पठनीय बना दिया है |