प्रथम भाग की तरह दूसरे भाग में भी २४ लेख हैं , जिनमें भिन्न -भिन्न विषयों का सुगम भाषा में प्रश्नोत्तर के माध्यम से विवेचन किया गया है तथा कुछ में कथाएं भी दी गयी हैं | लेख आबाल – गोपाल , स्त्री – पुरुष सभी के पढ़ने योग्य है |
उपन्यासों की श्रंखला में यह भी अपना विशेष महत्त्व रखता है | कुष्ट रोग से पीड़ित अपने पति कोटिभट श्रीपाल का एवं उसके सात सौ योद्धा साथियों का कुष्ठ रोग दूर करने वाली शीलशिरोमणि मैना सती को जैन समाज का ऐसा कौन व्यक्ति होगा , जो न जानता हो | जिसने सिद्धचक्र विधान रचाकर जिनेन्द्रभक्ति के प्रभाव स्वरूप अभिषेक का गंधोदक लगाकर महारोग को दूर किया | यह अति रोमांचक कथानक है |