अमृत मंथन!
[[श्रेणी:सूक्तियां]] ==अमृत मंथन== १. यस्य स्वयं स्वाभावाप्ति रभावे कृत्स्नकर्मण: तस्मै संज्ञानरूपाय नमोस्तु परमात्मने।। इष्टोपदेश १ मैं अनन्त ज्ञान स्वरूप परमात्मा को प्रणाम करता हूँ, जिन्होंने समस्त कर्मों का नाश हो जाने पर स्वयं अपने शुद्ध स्वरूप को प्राप्त किया है। २. एहु जु अप्पा सो परमप्पा कमविसेस जायउ जप्पा जामइं जाणइ अप्पे अप्पा तामइं सो…