उत्तम आकिंचन्य !
उत्तम आकिंचन्य बाह्य एवं अन्तरंग दोनों प्रकार के परिग्रह का पूर्णरूपेण त्याग करना उत्तम आकिंचन्य धर्म कहलाता है । इसे मुनिगण पालन करते हैं ।
उत्तम आकिंचन्य बाह्य एवं अन्तरंग दोनों प्रकार के परिग्रह का पूर्णरूपेण त्याग करना उत्तम आकिंचन्य धर्म कहलाता है । इसे मुनिगण पालन करते हैं ।
परमात्म प्रकाश – आचार्य श्री योगेन्दु देव द्वारा रचित एक महान आध्यात्मिक ग्रन्थ । जिसके स्वाध्याय से आत्मिक शक्ति प्राप्त होती है ।
उपनयन संस्कार- मनुष्यों के आठ वर्ष की उम्र में अष्टमूलगुण के ग्रहणरूप एवं पंच अणुव्रतरूप जो व्रतों का पालन किया जाता है ।सोलह संस्कारों में यह एकसंस्कार है ।
कुंथलगिरि- महाराष्ट्र प्रदेश में कुंथलगिरि नामका सिद्धक्षेत्र है । जहाँ से कुलभूषण और देशभूषण नामके मुनिराजों ने मोक्षधाम को प्राप्त किया था ।बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य श्री शान्तिसागर महाराज ने सन् १९५५ में इसी कुंथलगिरि की पहाड़ी पर समाधि ग्रहण करके इसका नाम इतिहास में अंकित करा दिया है ।
कातंत्र रूपमाला- श्री शर्ववर्म आचार्य द्वारा रचित संस्कृत व्याकरण का एक अपूर्व ग्रन्थ है , जिसके अध्ययन से जैन व्याकरण का पूर्ण ज्ञान प्राप्त होताहै । पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा हिन्दी टीका हुई है ।
==णमो सिद्धाणं== सिद्धों ([[सिद्ध]] [[परमेष्ठी]]) को नमस्कार हो । जो अरिहंत परमेष्ठी अघातिया कर्मों को नष्ट करके सिद्धशिला पर अमूर्तिक आत्मा के रूप में विराजमान हो जाते हैं और अनंत काल तक वहाँ अपनी आत्मा के अनंत सुख में निमग्न रहते हैं , वे सिद्ध परमात्मा कहे जाते हैं ।
==णमो अरिहंताणं== अरिहंतों ([[अरिहंत]] [[परमेष्ठी]]) को नमस्कार हो । जो मुनिराज तपस्या के द्वारा चार घातिया कर्मों का नाश कर अनन्तचतुष्टय गुणों को प्राप्त कर लेते हैं , वे अरिहंत परमेष्ठी कहलाते हैं ।
मोक्ष की प्राप्ति ‘‘बंध के हेतुओं का अभाव और निर्जरा से सब कर्मों का आत्यन्तिक क्षय होना ही मोक्ष है।’’ मिथ्यादर्शनादि बंध हेतुओं का अभाव होने से नूतन कर्मों का अभाव होता है और निर्जरारूप हेतु के मिलने पर अर्जित कर्मों का नाश हो जाता है। समस्त कर्मों का आत्यन्तिक वियोग हो जाना मोक्ष है।…