वसती!
ठहरने का स्थान साधुओं के लिए ,धर्मशाला
जो ज्ञान को ढके वो ज्ञानावरण कर्म है ” इस कर्म के उदय में आने पर व्यक्ति के ज्ञान का अभाव हो जाता है अर्थात वह ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता “
जैन विद्वानजैन विद्वान नाम की इस श्रेणी में दिगम्बर जैन समाज के समस्त विद्वान-प्रोफेसर-पंडित-प्रतिष्ठाचार्य आदि के पते प्रस्तुत किये जा रहे हैं।विशेष – इसमें स्थानों के नाम अंग्रेजी वर्णमाला के क्रमानुसार दिये गये हैं । [[श्रेणी:आध्यात्मिक_विभूतियाँ]]
अघातिया- ज्ञानावरण, दर्शनावरण,वेदनीय,मोहनीय,आयु ,नाम ,गोत्र ,अन्र्तराय इन आठ कर्मो में वेदनीय ,आयु, नाम, गोत्र ये अघातिया कर्म होते हैं
निगोद-सातों नरकों के नीचे जो स्थान है वह निगोद कहलाता है” निगोद के दो भेद है-१.इतर निगोद २.नित्य निगोद
हुण्डावसर्पिणी काल असंख्यात अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी काल के बीत जाने पर एक बार अनेक अघटित घटनाओं को प्रदर्शित करने वाला जो काल आता है , उसे हुण्डावसर्पिणीकाल कहते हैं । वर्तमान में वही हुण्डावसर्पिणीकाल चल रहा है । उसी के अन्तर्गत दुःषमा नामका पंचम काल चल रहा है ।
पड़गाहन विधि – दिगम्बर आम्नाय में साधू जब आहार के लिए निकलते हैं तो श्रावक उनका अत्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ कहकर पड़गाहन करते हैं”यही पड़गाहन विधि है”
अष्ट द्रव्य -जैन धर्म के अनुसार जिनेन्द्र भगवान की पूजा अष्ट द्रव्यों से की जाती है ” अष्ट द्रव्यों के नाम-१.जल(पानी) २.चन्दन ३.अक्षत(चावल) ४.पुष्प ५.नैवेध्य ६.दीप(दीपक) ७.धूप ८.फल