भूमिकल्प!
भूमिकल्प – Bhumikalpa. A book written by Acharya Indranandi. आचार्य इन्द्र्नन्दी (ई. श.१०) कृत एक तान्त्रिक ग्रंथ “
भूमिकल्प – Bhumikalpa. A book written by Acharya Indranandi. आचार्य इन्द्र्नन्दी (ई. श.१०) कृत एक तान्त्रिक ग्रंथ “
सुई का काम करो, कैंची का नहीं अर्थात् हमेशा एक- दूसरे को जोड़ने का काम करना चाहिए , तोड़ने का नहीं करना चाहिए ।
[[श्रेणी:मध्यलोक_के_जिनमंदिर]] == गन्धमादन गजदंत पर्वत पर ७ कूट == गन्धमादन पर्वत के ऊपर सातकूट स्थित हैं। सिद्ध नामक, गन्धमादन, देवकुरु, गन्धव्यास (गन्धमालिनी), लोहित, स्फटिक और आनन्द, ये उनकूट के सात नाम हैं। इन वूकूट की उँचाई आदिक सौमनसपर्वत के समान ही जानना चाहिये।।२०५७-२०५८।। विशेष यह है कि लोहित कूटपर भोगवती और स्फटिक नामक कूटपर भोगंकृति…
[[श्रेणी:मध्यलोक_के_जिनमंदिर]] == जंबूवृक्ष-शाल्मलिवृक्ष == उत्तरकुरु में ईशान दिशा में जंबूवृक्ष एवं देवकुरु में नैऋत्य दिशा में शाल्मलिवृक्ष हैं।
[[श्रेणी:मध्यलोक_के_जिनमंदिर]] == चौंतीस कर्मभूमि == भरतक्षेत्र के आर्यखंड की एक कर्मभूमि, वैसे ही ऐरावत क्षेत्र के आर्यखंड की एक कर्मभूमि तथा बत्तीस विदेहों के आर्यखंड की ३२ कर्मभूमि ऐसे चौंतीस कर्मभूमि हैं। इनमें से भरत-ऐरावत में षट्काल परिवर्तन होने से ये दो अशाश्वत कर्मभूमि हैं एवं विदेहों में सदा ही कर्मभूमि व्यवस्था होने से वे…
[[श्रेणी:मध्यलोक_के_जिनमंदिर]] == चौंतीस आर्यखंड == एक भरत में, एक ऐरावत में और बत्तीस विदेहदेशों में बत्तीस ऐसे आर्यखंड चौंतीस हैं।
[[श्रेणी:मध्यलोक_के_जिनमंदिर]] == सुमेरु पर्वत के वर्ण का कथन == यह सुमेरु पर्वत मूल में एक हजार प्रमाण वङ्कामय, पृथ्वीतल से इकसठ हजार योजन प्रमाण उत्तम रत्नमय, आगे अड़तीस हजार योजन प्रमाण सुवर्णमय है एवं ऊपर की चूलिका नीलमणि से बनी हुई है।
[[श्रेणी:मध्यलोक_के_जिनमंदिर]] == एक सौ सत्तर म्लेच्छखंड == भरत क्षेत्र के पाँच, ऐरावत क्षेत्र के पाँच और बत्तीस विदेह के प्रत्येक के पाँच-पाँच ५±५± (३२²५) ·१७० म्लेच्छ खंड हैं।
[[श्रेणी:मध्यलोक_के_जिनमंदिर]] == जंबूद्वीप के अठहत्तर जिनचैत्यालय == सुमेरु के चार वन संबंधी १६ ± छह कुलाचल के ६ ± चार गजदंत के ४± सोलह वक्षार के १६± चौंतीस विजयार्ध के ३४ ±जंबू शाल्मलि वृक्ष के २ ·७८। ये जंबूद्वीप के अठहत्तर चैत्यालय हैं। इनमें प्रत्येक में १०८-१०८ जिनप्रतिमायें विराजमान हैं उनको मेरा मन, वचन, काय…