मेरु पर्वत के शिखर का विस्तार!
[[श्रेणी:मध्यलोक_के_जिनमंदिर]] == मेरु पर्वत के शिखर का विस्तार == शिखर का विस्तार १००० योजन और उसकी परिधि ३१६२ योजन से कुछ अधिक है। यहाँ पांडुकवन की कटनी ४९४ योजन है अतः बीच में बचे १२ योजन जो कि चूलिका की चौड़ाई है।
[[श्रेणी:मध्यलोक_के_जिनमंदिर]] == मेरु पर्वत के शिखर का विस्तार == शिखर का विस्तार १००० योजन और उसकी परिधि ३१६२ योजन से कुछ अधिक है। यहाँ पांडुकवन की कटनी ४९४ योजन है अतः बीच में बचे १२ योजन जो कि चूलिका की चौड़ाई है।
पावापुर- बिहार प्रान्त में नालन्दा ज़िले में भगवान महावीर की निर्वाणभूमि पावापुर है ।
दिगम्बर मुनिदिशाएँ ही जिनका अम्बर होती हैं , ऐसे वस्त्रमात्र परिग्रह के त्यागी जैन मुनि दिगम्बर मुनि कहलाते हैं ।वर्तमान में दिगम्बर जैन समाज में ऐसे लगभग ६०० मुनि पूरे देश में विहार करते हुए त्याग एवं संयम का उपदेश दे रहे हैं ।
निर्वाणपद –आठों कर्मों का नाश करके जो अविनश्वर पद की प्राप्ति होती है , उसे निर्वाणपद कहते हैं ।इस पद के बाद संसार में पुनः जन्म नहीं लेना पड़ता है ।
श्रुतकेवली – ग्यारह अंग एवं चौदह पूर्वरूप श्रुत के ज्ञाता मुनिराज श्रुतकेवली कहलाते हैं ।
द्रव्यसंग्रहA book written by Acharya Nemichand Siddhant Chakravarti. आचार्य नेमिचन्द सिद्धांत चक्रवर्ती का तत्व व द्रव्य प्रतिपादक एक प्रसिद्ध ग्रंथ। समय ई. सन् 900 से 1000 के मध्य इसका हिन्दी पद्मानुवाद गणिनी ज्ञानमती माताजी द्वारा किया गया है। इसकी संस्कृत टीका श्री ब्रह्मदेवसूरी के द्वारा की गई है।