अनादिकाल!
अनादिकाल –जिसका न कोई आदि है और न अन्त है,ऐसे शाश्वत काल को अनादिकाल कहते हैं ।अनादिकाल से इस धरती पर जैनधर्म एवं उसके सर्वोदयी सिद्धान्त चले आ रहे हैं ।जो प्राणिमात्र के लिए हितकारी हैं ।
अनादिकाल –जिसका न कोई आदि है और न अन्त है,ऐसे शाश्वत काल को अनादिकाल कहते हैं ।अनादिकाल से इस धरती पर जैनधर्म एवं उसके सर्वोदयी सिद्धान्त चले आ रहे हैं ।जो प्राणिमात्र के लिए हितकारी हैं ।
जिनमंदिरजिस भवन में जिनेंद्र भगवान की प्रतिमाएँ विराजमान रहती हैं, उसे जिनमंदिर कहते हैं ।
णमो लोए सव्व साहूणं – लोक के सर्व साधुओं (साधु परमेष्ठी) को नमस्कार हो |
ज्ञान कल्याणक – तीर्थंकर भगवान के जब चार घातिया कर्मों का नाश हो जाता है , तब उन्हें केवलज्ञान प्रकट हो जाता है । इसी अवस्था का नाम है- ज्ञान कल्याणक ।
षोडशकारण व्रत – यह षोडशकारण अर्थात् सोलहकारण पर्व वर्ष में – माघ , चैत्र एवं भादों इन तीन महीनों में तीन बार आता है । इसमें ३२ दिन तक लोग व्रत भी करते हैं ।
कल्पवृक्ष- मन में कल्पना करने मात्र से जो वृक्ष मनवांछित फल प्रदान करता है, उसे कल्पवृक्ष कहते हैं ।भोगभूमि में और स्वर्गों में ऐसे कल्पवृक्ष होते हैं । जिनसे वहाँ के लोग मुँह माँगा फल प्राप्त करते हैं ।
मैथिलीशरण गुप्त (जन्म-3 अगस्त, 1886 झाँसी – मृत्यु- 12 दिसंबर, 1964 झाँसी) खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि हैं। श्री पं महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रेरणा से आपने खड़ी बोली को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया और अपनी कविता के द्वारा खड़ी बोली को एक काव्य-भाषा के रूप में निर्मित करने में अथक प्रयास…
आत्मसात् Absorbed or assimilated (knowledge). आत्मा के साथ एकमेक किया हुआ ज्ञान ।