काकन्दी (Kakndi)
काकन्दी (Kakndi) काकन्दी वर्तमान चौबीसी के नवमें तीर्थंकर भगवान पुष्पदन्त की जन्मभूमि है । पिता सुग्रीव एवं माता रामा थे । जन्मतिथि मगशिर शुक्ला एकम है भगवान पुष्पदन्तनाथ ने भी सम्मेदशिखर से मोक्ष प्राप्त किया ।
काकन्दी (Kakndi) काकन्दी वर्तमान चौबीसी के नवमें तीर्थंकर भगवान पुष्पदन्त की जन्मभूमि है । पिता सुग्रीव एवं माता रामा थे । जन्मतिथि मगशिर शुक्ला एकम है भगवान पुष्पदन्तनाथ ने भी सम्मेदशिखर से मोक्ष प्राप्त किया ।
कांपिल्य(Kampily) कांपिल्यपुरी वर्तमान चौबीसी के १३वें तीर्थंकर भगवान विमलनाथ की जन्मभूमि है यह उत्तर प्रदेश में स्थित है, वर्तमान में यह कंपिला जी के नाम से जानी जाती है, यहां महासती द्रौपदी का महल भी था परन्तु अब मात्र उसके अवशेष ही मिलते है। भगवान विमलनाथ की माता का नाम जयश्यामा एवं पिता का नाम…
कषाय (Kashay ) आत्मा के भीतरी कलुष परिणाम को कषाय कहते है यद्यपि क्रोध ये चार ही कषाय जगप्रसिद्ध है पर इनके अतिरिक्त भी अनेकों प्रकार की कषायों का निर्देश आगम में मिलता है । हास्य, रति, अरति, शोक, भय,ग्लानि व मैथुन भाव से नोकषाय कही जाती है क्योंकि कषयवत् व्यक्त नहीं होती । इन…
कल्याणक (KalyanaK) जैनागम में प्रत्येक तीर्थंकर के जीवनकाल के पांच प्रसिद्ध घटनास्थलों का उल्लेख मिलता है उन्हें पंचकल्याणक के नाम से कहा जाता है क्योंकि वे अवसर जगत के लिए अत्यन्त कल्याण व मंगलकारी होते है जो जन्म से ही तीर्थंकर प्रकृति लेकर उत्पन्न हुए हैं उनके तो पांचो कल्याणक होते है परन्तु जिसने अन्तिम…
कल्पद्रुम (Kalpadrum) (कल्पद्रुम का तात्पर्य है इच्छित वस्तु का प्रदायक) जैनागम में श्रावक के षटआवश्यक कत्र्तव्यों का वर्णन करते हुए आचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामी ने कहा कि ‘दाणं पूजा मुक्खो सावय धम्मो ण सावया तेण विणा अर्थात् श्रावक के धर्म में दान और पूजा ये दो क्रियाएं मुख्य है इनके बिना श्रावक नहीं हो सकता…
कर्म (Karm) कर्म शब्द के अनेक अर्थ है यथा – कर्मकारक, क्रिया तथा जीव के साथ बन्धने वाले विशेष जाति के पुद्गल स्कन्ध । कर्मकारक जगत, प्रसिद्ध है, क्रियाएं समवदान व अध:कर्म आदि के भेद से अनेक प्रकार है । कार्मण पुद्गलों का मिथ्यात्व, असंयम, योग और कषाय के निमित्त से आठ कर्म रूप, सातकर्मरूप…
कुन्दकुन्द (Kundkund) दिगम्बर आम्नाय के एक प्रधान आचार्य । अपरनाम गृद्धपिच्छ आदि पांच । नन्दिसंघ की पट्टावली में जिनचन्द्र आचार्य के पश्चात् मुनि पद्मनन्दी हुए । परिपाटी से आए हुए सिद्धान्त को जानकर कोण्डकुन्डपुर में श्रीपद्मनन्दि मुनि के द्वारा १२००० श्लोक प्रमाण ‘परिकर्म’ नाम का ग्रन्थ षट्खण्डागम के आद्य तीन खण्डों की टीका के रूप…
कंस (Kans) राजा उग्रसेन का पुत्र । मधुरा का क्रूर राजा । कंस अपने पूर्वभव में वशिष्ठ नाम के महातपस्वी दिगम्बर मुनिराज थे एक बार वे विहार कर मधुरा आए तब राजा प्रजा से पूजित वे मुनि एक माह का उपवास कर तपस्या कर रहे थे, राजा ने घोषणा की कि प्रजा उन्हें पारणा न…
उपयोगिता (Upyogita) पर्व के दिन उपवास में रात्रि में प्रतिमायोग धारण करना ‘उपयोगिता’ क्रिया है । श्रावकाध्याय संग्रह में क्रियायें तीन प्रकार की कही है, सम्यग्दृष्टि पुरूषों को वे क्रियायें अवश्य ही करनी चाहिए क्योंकि वे सब क्रियायें उत्तम फल देने वाली है । आदिपुराण पर्व ३८ पृ २४४ पर लिखा है – गर्भान्वयक्रियाश्चैव तथा…
उत्पादन (Utpadan) उत्पादन दोष के १६ भेद हैं उनके नाम इस प्रकार है – धात्री दोष, दूत, निमित्ति आजीवक, वनीपक, चिकित्सा, क्रोधी, मानी, मायावी, लोभी, पूर्वस्तुति, पश्चात् स्तुति , विद्या, मन्त्र, चूर्णयोग और मूलकर्म । १ धात्री दोष – धाय के सदृश बालक का पोषण संरक्षण आदि करके आहार लेना । २ दूत – अन्य…