ओज
ओज शरीर में शुक्रनाम की धातु का नाम ओज है । औदारिक शरीर में ओज एक अंजलि प्रमाण है । धवला ग्रन्थ में इसकी परिभाषा बताई है कि – जिस राशि को चार से अवहृत (भाग) करने पर दो रूप शेष रहते है वह बादर युग्म कही जाती है जिसको चार से भाग करने पर…
ओज शरीर में शुक्रनाम की धातु का नाम ओज है । औदारिक शरीर में ओज एक अंजलि प्रमाण है । धवला ग्रन्थ में इसकी परिभाषा बताई है कि – जिस राशि को चार से अवहृत (भाग) करने पर दो रूप शेष रहते है वह बादर युग्म कही जाती है जिसको चार से भाग करने पर…
ओघालोचना प्रतिक्षण उदित होने वाले कषायोजनित जो अन्तरंग व बाह्म दोष साधक की प्रतीति में आते हैं जीवन सोधन के लिए उनका दूर करना अत्यन्त आवश्यक है इस प्रयोजन की सिद्धि के लिए आलोचना सबसे उत्तम मार्ग है । सर्वार्थसिद्धि ग्रन्थ के अनुसार – गुरू के समक्ष दस दोषों को टाल कर अपने प्रमाद का…
ओघ आचार्य श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती द्वारा रचित गोम्मटसार जीवकाण्ड की गाथा में आचार्य श्री ने कहा – गुण जीवा पज्जत्ती पाणा सण्णा य मग्गणाओ य । उवओगो वि य कमसो बीसं तु परूवणा भणिदा ।। गुणस्थान, जीवसमास, पर्याप्ति, प्राण, संज्ञा, चौदह मार्गणा और उपयोग इस प्रकार ये बीस प्ररूपणा पूर्वाचार्यों ने कही हैं । ओघ,…
आसन्न भव्य जो जीव नियम से एक न एक दिन मोक्ष को प्राप्त करेगा वह भव्य जीव है । जिनका मोक्ष निकट है वे आसन्न भव्य जीव है । भव्य जीव दो प्रकार के है १ आसन्न भव्य २ दूरान्दूर भव्य ।
आशीर्वाद देव, शास्त्र, गुरू को नमस्कार प्रणाम करने पर आशीर्वाद प्राप्त होता है । और कर्मों का क्षय होता है । पात्र की दृष्टि से आशीर्वाद दिया जाता है जैसे – उत्तम पात्र – व्रती श्रावकों को समाधिरस्तु ’ आशीर्वाद है । मध्यम पात्र – गृहस्थजनों को ‘सद्धर्म वृद्धिरस्तु’ आशीर्वाद है । जघन्य मनुष्य –…
आबाधा कर्म का बंध हो जाने के पश्चात् वह तुरंत ही उदय में नही आता बल्कि कुछ काल पश्चात् परिपक्व दशा को प्राप्त होकर ही उदय मे आता है । इस काल को आवाधाकाल कहते है । उत्कृष्ट आवाधा में से जघन्य आवाधा को घटा कर जो शेष रहे उसमें एक अंक मिला देने पर…
आदेय जिसकर्म के उदय से कांति सहित शरीर हो । वह आदेय नाम कर्म है । और जिस कर्म के उदय से प्रभा रहित शरीर हो वह अनादेय नाम कर्म है । आदेयता, गृहणीयता और बहुमान्यता, ये तीनो शब्द एक अर्थ वाले है । जिस कर्म के उदय से जीव के बहुमान्यता उत्पन्न होती है,…
आहार संज्ञा संज्ञा नाम वाञछा का है । जिसके निमित्त से दोनों ही भवों में दारूण दु:ख की प्राप्ति होती है उस वाञछा को संज्ञा कहते हैं । संज्ञाये चार हैं – आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा और परिग्रह संज्ञा । ये प्रत्येक प्राणियों में पाई जाती है ।
आहार पर्याप्ति गृहीत आहार वर्गणा का खलरस , भाग आदि रूप परिणमाने की जीव की शक्ति के पूर्ण हो जाने को पर्याप्ति कहते हैं । पर्याप्ति के छह भेद हैं – आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छवास, भाषा और मन ये छह पर्याप्तियां हैं । एकेन्द्रिय जीव के प्रारम्भ की चार, विकलत्रय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय के मन…
आहारक समुद्घात मूल शरीर को न छोड़कर तैजस – कार्माणरूप उत्तर देह के साथ साथ जीव प्रदेशों के शरीर से बाहर निकलने को समुद्घात कहते हैं । समुद्घात के सात भेद है – वेदना, कषय, वैक्रियक, मारणांतिक, तैजस, आहारक और केवली । धवला पुस्तक में लिखा है – हस्त प्रमाण सर्वांग सुन्दर, समचतुरस – संस्थान…