मौन एक साधना प्रस्तुति- स्वस्तिश्री क्षुल्लक अतुल्य सागर मौन… केवल वाणी से कुछ न कहने का नाम नहीं, मौन तो एक क्रिया है जो आपकी चुप्पी से शुरू होती है और गहन सत्य की खोज तक अनवरत चलती रहती है। कुछ न कहना तो मौन की शुरूआत मात्र है, वास्तविकता में मौन दसों इन्द्रियों को…
मूल जैन संस्कृति : अपरिग्रह कहते हैं सत्य बड़ा कड़वा अमृत है। जो इसे हिम्मत करके एक बार पी लेता है वह अमर हो जात है और जो इसे गिरा देता है वह सदा पछताता है। हम एक ऐसा सत्य कहने जा रहे हैं। जिसे जन—मानस जानता है—मानता नहीं और यदि मानता है तो उस…
जीव की मानसिक दशा का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण ब्र. विद्युल्लता हीराचन्द शाह(श्राविका संस्था नगर, सोलापुर) श्राविका—संस्थानगर सोलापुर में भगवान महावीर का अति मनोज्ञ मन्दिर है। वहां एक विशाल भित्ति—चित्र बनवाया गया है जिसे देखकर एक जैनेतर धर्मी व्यक्ति ने जिज्ञासा से प्रश्न किया कि ‘‘ यह वृक्ष और ६ आदमियों का चित्र क्यों बनाया गया है?…
महापुराण प्रवचन-७ श्रीमते सकलज्ञान, साम्राज्य पदमीयुषे। धर्मचक्रभृते भत्र्रे, नम: संसारभीमुषे।। महानुभावों! भगवान ऋषभदेव के दशवें भव पूर्व का प्रकरण चल रहा है कि राजा महाबल के मंत्री स्वयंबुद्ध एक बार सुमेरुपर्वत की वंदना करने गये। वहां वंदना करते हुए सौमनसवन के पूर्व दिशा के चैत्यालय में बैठ गये। अकस्मात् ही पूर्व विदेह से युगमंधर भगवान्…
धातकी व पुष्करार्ध द्वीप में हिमवान आदि पर्वतों की संख्या अथ तद्द्वीपद्वयावस्थितानां कुलगिरिप्रभृतीनां स्वरूपं निरूपयति— कुलगिरिवक्खारणदीदहवणवुंडाणि पुक्खरदलोत्ति। ओवेधुस्सेहसमा दुगुणा दुगुणा दु वित्थिण्णा।।९२६।। कुलगिरिवक्षारनदीद्रहवनकुण्डानि पुष्करदल इति। अवगाधोत्सेधसमा द्विगुणा द्विगुणाः तु विस्तीर्णाः।।९२६।। कुल। धातकीखण्डादारभ्य पुष्करार्धपर्यन्त तत्र तत्रस्थाः कुलगिरयः १२ वक्षाराः ४० नद्यः १८० ह्रदाः ५२ वनानि ? कुण्डानि १८०। एते सर्वे जम्बूद्वीपस्थकुलगिरिप्रभृतीनामवगाधोत्सेधाभ्यां समानाः एतेषां विस्तारास्तु जम्बूद्वीपस्थविस्तारेभ्यो द्विगुणद्विगुणाः।।९२६।।…
महापुराण प्रवचन-८ श्रीमते सकलज्ञान, साम्राज्य पदमीयुषे। धर्मचक्रभृते भत्र्रे, नम: संसारभीमुषे।। महानुभावों! भगवान ऋषभदेव के दशवें भवपूर्व राजा महाबल ने स्वयंबुद्ध मंत्री के सम्बोधन से जिनमंदिर में जाकर सल्लेखना ग्रहण कर ली थी और धर्मध्यानपूर्वक उन्होंने उपसर्गे दुर्भिक्षे, जरसि रुजायां च नि:प्रतीकारे। धर्माय तनुविमोचनमाहु:सल्लेखनामार्या:।। अर्थात् उपसर्ग-संकट आ जावे, ऐसा बुढ़ापा आ जावे कि अब शरीर पूर्ण…
गुरु वंदना (श्रावक-श्राविकाओं के लिए) गुरुभक्त्या वयं सार्ध-द्वीपद्वितयर्वितन: ।वन्दामहे त्रिसंख्योन-नवकोटि मुनीश्वरान् ।। णिच्चकालं अंचेमि, पूजेमि, वंदामि, णमंसामि, दुक्खक्खओ, कम्मक्खओ, बोहिलाहो, सुगइगमणं, समाहिमरणं जिणगुणसंपत्ति होउ मज्झं। आचार्य, उपाध्याय और साधुओं की वंदना करते समय ‘गुरुवंदना’ पढ़कर नमोऽस्तु करें।आर्यिकाओं को वंदामि तथा ऐलक, क्षुल्लक व क्षुल्लिका को इच्छामि कहकर नमस्कार करें।यह कृतिकर्म सहित देववंदन विधि जैसा कि…
कायोत्सर्ग के ३२ दोष अब कायोत्सर्ग के ३२ दोष बतलाते हैं- १. घोटकदोष – घोड़े के समान एक पैर उठाकर अर्थात् एक पैर से भूमि को स्पर्श न करते हुए खड़े होना । २. लता दोष – वायु से हिलती लता के समान हिलते हुए कायोत्सर्ग करना । ३. स्तंभदोष – स्तंभ का सहारा लेकर…
रात्रि भोजन : एक वैज्ञानिक दृष्टि लेखक— उपाध्याय श्री निर्भय सागरजी हमारे पूज्य अरिहंतों आचार्यों एवं ऋषि—मुनियों ने वर्तमान मानव पर्याय में सुख , शांति एवं स्वस्थ जीवन जीने की कला के साथ—साथ आगामी कला में मोक्ष सुख की प्राप्ति के अनेक सूत्र दिये हैं, उन सूत्रों में एक सूत्र है रात्रि भोजन त्याग अर्थात्…