महामंत्र का माहात्म्य उर्मिला– बहन त्रिशला ! हमें एक बात बताओ कि प्रायः सभी जैन लोग प्रातः उठकर णमोकार मंत्र का स्मरण करते हैं क्या कारण है ? इससे क्या फल मिलता है ? त्रिशला–बहन ! णमोकार मंत्र महामंत्र है ” इस महामंत्र से चौरासी लाख मंत्र उत्पन्न होते हैं” वास्तव में इसकी महिमा का…
संजयन्त मुनि पर उपसर्ग जम्बूद्वीप के बीचोंबीच में सुमेरू पर्वत है जिसके कारण विदेह क्षेत्र दो भागों में विभक्त हो गया है-पूर्व विदेह और पश्चिम विदेह। इन विदेह क्षेत्रों में सतत तीर्थंकर विहार करते रहते हैं। पश्चिम विदेह के अन्तर्गत गन्धमालिनी नामक देश है उसकी प्रमुख राजधानी वीतशोकपुर है । उस वीतशोकपुर के राजा वैजयन्त…
धातकीखण्डद्वीप और पुष्करार्धद्वीप में दो-दो इष्वाकार पर्वत के जिनमंदिर साम्प्रतं धातकीखण्डपुष्करार्धयोरेकप्रकारत्वादग्रे वक्ष्यमाणक्षेत्रविभागहेतून् तयोरुभयपार्श्व-स्थितमिष्वाकारपर्वतानाह— चउरिसुगारा हेमा चउकूड सहस्सवास णिसहुदया। सगदीववासदीहा इगिइगिवसदी हु दक्खिणुत्तरदो१।।९२५।। चतुरिष्वाकारा हेमाः चतुःकूटाः सहस्रव्यासा निषधोदयाः। स्वकद्वीपव्यासदीर्घा एवैकवसतयः हि दक्षिणोत्तरतः।।९२५।। चउ। धातकीखण्डपुष्करार्धयोर्मिलित्वा हेममयाश्चतुः कूटाः सहस्रव्यासाः निषधोदया ४०० वस्कीयद्वीपव्यासदैध्र्याः एवैक़कवसतयश्चत्वार इष्वाकारपर्वतास्तयोद्र्वीपयोर्दक्षिणोत्तरतस्तिष्ठन्ति।।९२५।। धातकीखण्डद्वीप और पुष्करार्धद्वीप में दो-दो इष्वाकार पर्वत के जिनमंदिर धातकीखण्ड और पुष्करार्ध में क्षेत्र…
धर्मतीर्थ परम्परा केवली जिस दिन वीर भगवान सिद्ध हुए उसी दिन गौतम गणधर केवलज्ञान को प्राप्त हुए पुनः गौतम स्वामी के सिद्ध हो जाने पर उसी दिन श्री सुधर्मास्वामी केवली हुए। सुधर्मास्वामी के मुक्त होने पर जंबूस्वामी केवली हुए। पश्चात् जंबूस्वामी के सिद्ध हो जाने पर फिर कोई अनुबद्ध केवली नहीं रहे।गौतम स्वामी के केवलज्ञान…
कामदेव-जिनदेव का संग्राम (मदन पराजय के आधार से) (रूपक अलंकार से समन्वित इस कथानक में कर्मों का जिनराज के साथ युद्ध दर्शाया गया है। इसमें भव-संसार को एक मनोहर नगर की उपमा दी है, मकरध्वज-कामदेव को उस नगर का राजा नियुक्त किया है, मोह नाम का व्यक्ति उस राजा के यहाँ मंत्रीपद पर कार्यरत है…
माता जी की युग – परिस्थिति न्याय प्रभाकर सिद्धान्त वाचस्पति पू० गणिनी आर्यिका रत्न ज्ञानमती जी ने जब त्याग मार्ग में प्रवेष किया उस समय समाज में गृहीत मिथ्यात्व, संस्कार “शान्यता, धार्मिक अज्ञान, अषिक्षा, संस्थाओं की निश्क्रियता एवं नारी का पिछडा़पन व्याप्त थे। राश्ट्र की पराधीनता के कारण देष हीन दषा ग्रस्त था। प० पू०…
[[श्रेणी:मध्यलोक_के_जिनमंदिर]] == विजयद्वार का एवं उनमें जिनप्रतिमाओं का वर्णन विजयंतवेजयंतं जयंतअपराजयंतणामेिंह।। चत्तारि दुवाराइं जंबूदीवे चउदिसासुं१।।४१।। पुव्वदिसाए विजयं दक्खिणआसाय वइजयंतं हि। अवरदिसाय जयंतं अवराजिदमुत्तरासाए।।४२।। एदाणं दाराणं पत्तेक्कं अट्ठ जोयणा उदओ। उच्छेहद्धं रुंदं होदि पवेसो वि वाससमं।।४३।। ८। ४। ४। वरवज्जकवाडजुदा णाणाविहरयणदामरमणिज्जा। णिच्चं रक्खिज्जंते वेंतरदेवेिह चउदारा।।४४।। दारोवरिमपएसे पत्तेक्कं होदि दारपासादा। सत्तारहभूमिजुदा णाणावरमत्तवारणया।।४५।। दिप्पंतरयणदीवा विचित्तवरसालभंजिअत्थंभा। धुव्वंतधयवडाया विविहालोच्चेिह रमणिज्जा।।४६।।…
[[श्रेणी:कुन्दकुन्द_वाणी]] == श्रावक धर्म संकलनकर्त्री- गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी हिन्दी पद्यानुवादकर्त्री- आर्यिका चंदनामती चारित्र के दो भेद— जिणणाणदिट्ठिसुद्धं, पढमं सम्मत्तचरणचारित्तं। विदियं संजमचरणं, जिणणाणसदेसियं तं पि।।। (चारित्रपाहुड़ गाथा-५) शंभु छन्द— सम्यक्तवचरण चारित्र प्रथम, श्री जिनवर ने उपदेशा है। जो सम्यग्दर्शन और ज्ञान, से शुद्ध चरित निर्देशा है।। दूजा है संयमचरण चरित जो, सकल विकल द्वयरूप कहा।…