नंदीश्वर द्वीप के जिनमंदिर इदानीं नन्दीश्वद्वीपं सविशेषं प्रतिपादयन् तावत्तस्य वलयव्यासमाह— आदीदो खलु अट्ठमणंदीसरदीववलयविक्खंभो। सयसमहियतेवट्ठीकोडी चुलसीदिलक्खा ये१।।९६६।। आदितः खलु अष्टमनन्दीश्वरद्वीपवलयविष्कम्भः। शतसमधिकत्रिषष्टिकोटिः चतुरशीतिलक्षश्च।।९६६।। आदीदो। जम्बूद्वीपादारभ्याष्टमनन्दीश्वरद्वीपवलयविष्कम्भः शतसमधिकत्रिषष्टिकोटिचतुरशीतिलक्षयो- जनप्रमितः खलु १६३८४००००० एतावत्कथं नन्दीश्वरद्वीपसहितप्राक्तनद्वीपसमुद्राणां संख्या १५ कृत्वा रूऊणाहियपदमित्यादिना कृते सति भवति।।९६६।। अथात्र दिव्चतुष्टयस्थितानां पर्वतानामाख्यां संख्यामवस्थानं च निरूपयति— एक्कचउक्कट्ठं जणदहिमुहरइयरणगा पडिदिसम्हि। मज्झे चउदिसवावीमज्झे तब्बाहिरदुकोणे।।९६७।। एकचतुष्काष्टाञ्जनदधिमुखरतिकरनगाः प्रतिदिशं। मध्ये चतुर्दिग्वापीमध्ये तद्बाह्यद्विकोणे।।९६७।। एक्क। प्रतिदिशं…
जिनेन्द्र भक्ति संकलनकर्त्री- गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी हिन्दी पद्यानुवादकर्त्री- आर्यिका चंदनामती तीर्थंकर स्तुति थोस्सामि हं जिणवरे, तित्थयरे केवली अणंतजिणे। णरपवरलोयमहिए, विहुयरयमले महप्पण्णे।। (चौबीस तीर्थंकर भक्ति गाथा-१) शंभु छन्द— श्री जिनवर तीर्थंकर केवलज्ञानी, अर्हत्परमात्मा हैं। जो हैं अनन्तजिन मनुजलोक में, पूज्य परम शुद्धात्मा हैं।। निज कर्म मलों को धो करके, जो महाप्राज्ञ कहलाते हैं। ऐसे जिनवर…
भाव बंध और द्रव्य बंध जिन चेतन के परिणामों से, ये कर्म जीव से बंधते हैं। उन भावों को ही भावबंध, संज्ञा श्रीजिनवर कहते हैं।। जो कर्म और आतम प्रदेश, इनका आपस में मिल करके। अति एकमेक हो बंध जाना, यह द्रव्यबंध है बहुविध से।।३२।। आत्मा के जिन भावों से कर्म बंधता है, वह आत्मा…
जैन न्याय में वाद की मौखिक तथा लिखित परम्परा वाद का स्वरूप (नैयायिकों का मत)—जब से मनुष्य मेें विचारशक्ति का विकास हुआ, तभी से पक्ष—प्रतिपक्ष के रूप में विचारधाराओं का संघर्ष भी हुआ है। इसी से वाद—प्रवृत्ति का जन्म हुआ। नैयायिक इस वाद—वृत्ति को ‘कथा’ का नाम देकर इसके तीन भेद करते हैं—वाद, जल्प और…
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: डॉ. उषा खोसला हिन्दू समाज में नारी का स्थान बहुत ऊँचा है। नारी भगवती दुर्गा की प्रतिमूर्ति समझ जाती है। जिस जाति में नारी का जितना अधिक सम्मान होता है वह जाति उतनी ही अधिक सभ्य समझी जाती है। नारी जाति के सम्बन्ध में स्मृतिकारों के विचार भी बहुत…
अभ्यंतर व बाह्य परिग्रह पाक्षिक प्रतिक्रमण पाठ में—अभ्यंतर परिग्रह में श्री गौतमस्वामी ने आठ कर्म के ८ भेद कहे है—पुनः बाह्य- परिग्रह के अनेक भेद कहे हैं। यथा— अहावरे पंचमे महव्वदे परिग्गहादो वेरमणं, सो वि परिग्गहो दुविहो, अब्भंतरो बाहिरो चेदि तत्थ अब्भंतरो परिग्गहो णाणवरणीयं दंसणावरणीयं वेयणीयं मोहणीयं आउग्गं णामं गोदं अंतरायं चेदि अट्ठविहो, तत्थ बाहिरो…
दम्भ — डॉ.राजीव प्रचण्डिया नगर में घनदत्त नाम के एक सेठ थे। अपनी मेहनत और लगन से व्यापार में उन्होंने खूब पैसा कमाया। उनका यह पैसा अधिकांशत: प्याऊ लगवाने सड़कों के इर्द—गिर्द छायादार वृक्ष लगवाने धर्मशालाएँ खुलवाने तथा कूप—वावड़ियों के निर्माण आदि में ही खर्च होता। कुछ ही वर्षो में नगर में उन्होंने अपनी विशेष…
पुण्य-पाप पदार्थ शुभ भाव सहित ये जीव नियम से, पुण्यरूप हो जाते हैं।और अशुभ भाव से पापरूप, मिल नव पदार्थ कहलाते हैं।।साता प्रकृति शुभ आयु नाम, शुभगोत्र सुपुण्य प्रकृतियाँ हैं।इनसे उलटी जो अशुभ आयु, नामादिक पाप प्रकृतियाँ हैं।।३८।। शुभ और अशुभ भावों से सहित जीव नियम से पुण्यरूप और पापरूप होते हैं। सातावेदनीय, शुभ आयु,…
दृढ़ता का ज्वलन्त उदाहरण सेठ प्रियदत्त अपनी भार्या और कन्या सहित श्री महामुनि धर्मकीर्ति आचार्य के समीप बैठे हुए धर्मोपदेश सुन रहे हैं। उपदेश के अनन्तर सेठ जी हाथ जोड़कर गुरु से निवेदन करते हैं- ‘‘श्रीगुरुदेव! इस अष्टान्हिक महापर्व में आठ दिन के लिए मुझे ब्रह्मचर्य व्रत प्रदान कीजिए।’’ मुनिराज भी पिच्छिका उठाकर कुछ मंत्र…