प्राण प्ररूपणा सार
गुणस्थानसार प्राण प्ररूपणा सार बाह्य उच्छ्वास आदि बाह्य प्राणों से तथा इंद्रियावरण कर्म के क्षयोपशम आदि अभ्यन्तर प्राणों से जिनमें जीवितपने का व्यवहार होता है वे जीव हैं अर्थात् जिनके सद्भाव में जीव में जीवितपने का और वियोग होने पर मरणपने का व्यवहार हो, उनको प्राण कहते हैं। पर्याप्ति कारण है आौर प्राण कार्य है।…