मुनिधर्म का कथन
मुनिधर्म का कथन आचारो दशधर्मसंयमतपोमूलोत्तराख्यागुणा: मिथ्यामोहमदोज्झनं शमदमध्यानप्रमादस्थिति:। वैराग्यं समयोपवृंहणगुणा रत्नत्रयं निर्मलं, पय्र्यन्ते च समाधिरक्षपदानन्दाय धर्मो यते: ।।३८।। अर्थ—जनधर्म में दर्शनाचार, ज्ञानाचार, चारित्राचार, तप आचार, वीर्याचार इस प्रकार पांच प्रकार के आचार तथा उत्तमक्षमा, उत्तममार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम सत्य, उत्तम शौच, उत्तम संयम, उत्तमतप, उत्तम त्याग, उत्तम आविंâचन्य तथा उत्तमब्रह्मचर्य इस प्रकार का दश धर्म तथा…