‘क्रमनियमित’ विशेषण का अभिप्रेतार्थ
आत्मख्याति टीका में प्रयुक्त ‘क्रमनियमित’ विशेषण का अभिप्रेतार्थ – अनिल अग्रवाल ,दिलशाद गार्डन, दिल्ली समयसार के ‘सर्वविशुद्धज्ञान’ अधिकार में गाथा ३०८-३११ की टीका में आचार्य अमृतचन्द्र ने परिणामों या पर्यायों के लिये ‘क्रमनियमित’ विशेषण का प्रयोग किया है। आत्मख्याति व्याख्या का यह वाक्य है। जीवो हि तावत्क्रमनियमितात्मपरिणामैरुत्पाद्यमानो जीव एव, नाजीवः, एयमजीवोऽषि क्रमनियमितात्मपरिणामैरुत्पाद्यमानोऽजीव एव, न जीवः,…