वीतराग की महिमा का वर्णन
इसमें गुरु की वीतरागता के बारे में बताया गया है -जो रत्नत्रयधारी निर्ग्रन्थ महामुनियों की भक्ति करते हैं, स्तुति करते हैं वे इस संसार में विद्वानों द्वारा प्रशंसा को प्राप्त करते हैं।
इसमें गुरु की वीतरागता के बारे में बताया गया है -जो रत्नत्रयधारी निर्ग्रन्थ महामुनियों की भक्ति करते हैं, स्तुति करते हैं वे इस संसार में विद्वानों द्वारा प्रशंसा को प्राप्त करते हैं।
संसार में दृश्य मान सभी वस्तुएं कभी ना कभी नष्ट होने वाली हैं कोई भी वस्तु सदा रहने वाली नहीं हैं |
दिगम्बर जैन मुनिराज की चर्या का विषद वर्णन यहाँ प्रस्तुत किया गया हैं |
सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र इन तीनों की एकता ही रत्नत्रय धर्म है |
उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य एवं ब्रह्मचर्य ये सभी दशधर्म के बताने वाले हैं |
अध्यात्म प्रवाह में आत्मा के बहिरात्मा अन्तरात्मा और परमात्मा ऐसे तीन भेद बताते हुए बहिरात्मा को सर्वथा हेय माना गया है पुन: क्रम क्रम से अन्तरात्मा में स्थिर होकर परमात्मा बनने का उद्देश्य दिया गया हैं |
तीन लोक : एक दृष्टि में सर्वज्ञ भगवान से अवलोकित अनंतानंत अलोकाकाश के बहुमध्य भाग में ३४३ राजू प्रमाण पुरुषाकार लोकाकाश है। यह लोकाकाश जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और काल इन पांचों द्रव्यों से व्याप्त है। आदि और अन्त से रहित-अनादि अनंत है, स्वभाव से ही उत्पन्न हुआ है। छह द्रव्यों से सहित यह लोकाकाश…
जैन भूगोल – एक दृष्टि में यह तीन लोक अनादिनिधन-अकृत्रिम हैं। इसको बनाने वाला कोई भी ईश्वर आदि नहीं है। इसके मध्यभाग में कुछ कम तेरह राजू लंबी, एक राजू चौड़ी और मोटी त्रसनाली है। इसमें सात राजू अधोलोक है एवंं सात राजू ऊँचा ऊध्र्वजलोक है तथा मध्य में निन्यानवे हजार चालीस योजन ऊँचा और…
आहार प्रत्याख्यान कब करना? दिगम्बर जैन साधु-साध्वी मंदिर में जाकर मध्यान्ह देववन्दना और गुरुवंदना करके आहार को निकलते हैं ऐसा मूलाचार टीका, अनगार धर्मामृत आदि में विधान है फिर भी आजकल प्रात: ९ बजे से लेकर ११ बजे तक के काल में आहार को निकलते हैं। संघ के नायक आचार्य आदि गुरु पहले निकलते हैं…
जैन भूगोल-परम्परा जो राग-द्वेष, क्रोध, मान, माया,लोभ आदि अंतरंग शत्रुओं को वश में करके कर्म शत्रुओं पर पूर्ण विजय प्राप्त कर चुके हैं वे ‘‘जिन’’ कहलाते हैं। उन जिन भगवान के उपासक जैन हैं। प्राणीमात्र पर दया की भावना रखने से यह जैनधर्म ‘‘सार्वभौम’’ धर्म है, इन्हीं जिन भगवान के द्वारा कथित भूगोल जैन-भूगोल कहलाता…