रत्नकरण्ड श्रावकाचार में वर्णित श्रावक-व्रतों का वैशिष्ट्य
रत्नकरण्ड श्रावकाचार में वर्णित श्रावक-व्रतों का वैशिष्ट्य जैन धर्म केवल निवृत्तिमूलक दर्शन नहीं है, बल्कि उसके प्रवृत्त्यात्मक रूप में अनेक ऐसे तत्त्व विद्यमान हैं, जिनमें निवृत्ति और प्रवृत्ति का समन्वय होकर धर्म का लोकोपकारी रूप प्रकट हुआ है। इस दृष्टि से जैनधर्म जहाँ एक ओर अपरिग्रही, महाव्रतधारी अनगार धर्म के रूप में निवृत्तिप्रधान दिखाई देता…