प्रशस्ति
प्रशस्ति वीर अब्द पच्चीस सौ, इक्यावन जग धन्य। फाल्गुन वदि षष्ठी तिथी, पूजा संग्रह वंद्य।।१।। तीर्थ अयोध्या धन्य है, सार्वभौम जिनधर्म। ‘गणिनी ज्ञानमती’ रचित, देवे शिवपथ मर्म।।२।। भविजन नित पूजा करो, भरो पुण्य भंडार। परम अिंहसा धर्म की, सदा रहे जयकार।।३।।