कल्याण मंदिर विधान
“…कल्याण मंदिर विधान…” मंगलाचरण कल्याणमंदिर विधान पूजा अथ प्रत्येक अर्घ्य प्रशस्ति कल्याण मंदिर विधान की मंगल आरती भजन कल्याणमन्दिरस्तोत्रपूजा श्रीपार्श्वनाथस्तवन
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“…कल्याण मंदिर विधान…” मंगलाचरण कल्याणमंदिर विधान पूजा अथ प्रत्येक अर्घ्य प्रशस्ति कल्याण मंदिर विधान की मंगल आरती भजन कल्याणमन्दिरस्तोत्रपूजा श्रीपार्श्वनाथस्तवन
जिन सहस्रनाम मंत्र…. जिनसहस्रनाम मंत्र जिनसहस्रनाम पूजा सहस्रनाम व्रत विधि सरस्वती स्तोत्र जिनवाणी स्तुति सरस्वती देवी के १०८ मंत्र सरस्वती पूजा ज्ञान पचीसी व्रत विधि
दीपावली पूजन…. १. दीपावली पूजन विधि २. नवदेवता पूजा ३. भगवान महावीर पूजन ४. निर्वाणकाण्ड भाषा ५. गौतम गणधर पूजा ६. केवलज्ञान महालक्ष्मी पूजा ७. दीपावली पूजा विधि नं. २ ८. वीर निर्वाण संवत्सर पूजा ९. पावापुरी सिद्धक्षेत्र पूजा १०. भजन ११. भजन (अंग्रेजी) १२. भजन १३. महावीर स्वामी की आरती
भरत का भारत (१) यशस्वती महादेवी राजमहल में सो रही थीं, रात्रि के पिछले प्रहर में उन्होंने उत्तम-उत्तम छह स्वप्न देखे। स्वप्न देखने के बाद मंगलपाठ पढ़ते हुए बंदीजनों के शब्द सुनकर वे जाग पड़ीं। बंदीजन इस तरह पाठ पढ़ रहे थे कि- ‘‘हे कल्याणि! दूसरों का कल्याण करने वाली और स्वयं सैकड़ों कल्याण को…
कुन्दकुन्द मणिमाला… १. भक्ति अधिकार २. श्रावक धर्म अधिकार ३. मुनिधर्म (सराग चारित्र) ४. वीतराग चारित्र ५. वीतराग चारित्र का फल ६. प्रशस्ति ७. कुन्दकुन्द स्वामी की वंदना ८. णमोकार महामंत्र एवं चत्तारि मंगल पाठ
मंगलाष्टक पंचामृत अभिषेक पाठ शांतिधारा पूजा प्रारंभ विधि पूजा प्रारंभ विधि (हिन्दी पद्यानुवाद) देव-शास्त्र-गुरु पूजा श्री बीस तीर्थंकर पूजा भाषा अकृत्रिम चैत्यालयों के अर्घ्य सिद्ध पूजा समुच्चय चौबीसी जिनपूजा समुच्चय महार्घ्य शांतिपाठ (संस्कृत) शांतिपाठ (हिन्दी) श्री आदिनाथ जिनपूजा श्री चन्द्रप्रभ जिनपूजा श्री शीतलनाथ पूजा श्री नेमिनाथ पूजा श्री पार्श्वनाथ जिनपूजा श्री महावीर जिनपूजा श्री ज्येष्ठ…
परीक्षा (जैन रामायण)…. (१) सीता का स्वयंवर कुछ क्षण विश्रांति करके राजा जनक निःशंक हो गोपुर में प्रवेश करते हैं। वहाँ जाकर देखते हैं कि चारों तरफ जहाँ-तहाँ पैâले हुए और फूले हुए रंग-बिरंगे पुष्प अपनी मधुर सुगंधि से मन को आकृष्ट कर रहे हैं। सुन्दर-सुन्दर बावड़ियों में स्वच्छ शीतल जल लहरा रहा है और…
दशधर्म…. सिद्धिप्रासादनि:श्रेणीपंक्तिवत् भव्यदेहिनाम्। दशलक्षणधर्मोऽयं नित्यं चित्तं पुनातु न:।।१।। भव्य जीवों के सिद्धिमहल पर चढ़ने के लिए सीढ़ियों की पंक्ति के समान यह दशलक्षणमय धर्म नित्य ही हम लोगों के चित्त को पवित्र करे। इन दशधर्मों के उपासना के पर्व को दशलक्षण पर्व कहते हैं। चूूँकि इसमें उपवास आदि के द्वारा आत्मा को पवित्र बनाया जाता…