एकांकी – 1
एकांकी – 1…. १. महामंत्र का प्रभाव २. अहिंसा की पूजा ३. सती चंदना
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आटे का मुर्गा…. (१) उज्जयिनी नगरी में चारों तरफ हर्ष और विषाद का वातावरण एक साथ दिख रहा है। महाराजा यशोध अपने पुत्र यशोधर का राज्याभिषेक महोत्सव सम्पन्न कर चुके हैं। उसके मस्तक पर अपना पट्टबंध रखकर स्नेह से भरे शब्दों में कह रहे हैं- ‘‘बेटा यशोधर! जैसे मैंने अपने पिता यशबंधुर के दिए हुए…
पतिव्रता (१) राजा पुहुपाल अपने राजसिंहासन पर आरूढ़ थे। मंत्रीगण नगरी की शोभा का बखान कर रहे थे। प्रधानमंत्री ने कहा— ‘राजन्! इस उज्जयिनी नगरी में राजपथ के दोनों ओर गगनचुम्बी राजप्रासादों की कतार बनी हुई है। उनके ऊपरी भाग में कंगूरे के ऊपर कलश और ध्वजा की अपूर्व शोभा दिखाई दे रही है। आपके…
धरती के देवता….. सिद्ध पद के इच्छुक जो महापुरुष पंचेन्द्रिय के विषयों की इच्छा समाप्त करके सम्पूर्ण आरम्भ और परिग्रह का त्याग कर देते हैं तथा ज्ञान ध्यान और तप में सदैव तत्पर रहते हैं, वे ही मुक्तिपथ के साधक होने से सच्चे साधु कहलाते हैं। वे महामना दिगम्बर अवस्था को धारण कर लेते हैं।…
आदिब्रह्मा (१) महाराजा नाभिराय और मरुदेवी से अलंकृत पवित्र स्थान में कल्पवृक्षों का अभाव देखकर और ‘‘इन दोनों के स्वयंभू ऋषभदेव पुत्र जन्म लेंगे।’’ ऐसा अवधिज्ञान से जानकर स्वयं इंद्र अनेक उत्साही देवों के साथ वहाँ आते हैं और उसी स्थल को मध्य में करके एक सुन्दर नगरी की रचना कर देते हैं। चार गोपुर…
१. जिनमाता की महिमा २. कन्यारत्न ही सर्वोत्कृष्ट रत्न है ३. जटायु पक्षी ४. भाग्य का चमत्कार ५. उपवास के गुण ६. अनेकांत ७. तीर्थंकरों के पूर्व भव के गुरु ८. अभक्ष्य किसे कहते हैं? ९. तप का प्रभाव १०. आई हुई निधि चली गई ११. जिनधर्म की देशना का पात्र कौन? १२. प्रत्युपकार १३….
१. महामंत्र का माहात्म्य २. रानी चेलना ३. संक्लेश का फल ४. सती सुलोचना ५. तिर्यंचों में विवेक ६. मुनि निन्दा का फल ७. जिनेन्द्र प्रतिमा की आसादना का फल ८. कनकश्री का वैराग्य ९. लब्धि विधान व्रत की महिमा १०. महासती चन्दना ११. नागश्री १२. क्या हम भी तीर्थंकर बन सकते हैं? १३. वैयावृत्य…
……प्रभावना…… (१) जिनमंदिर के विशाल प्रांगण में जैन जनता का अपार समूह उमड़ता चला आ रहा है। कारण है कि आज फाल्गुन शुक्ला अष्टमी है, आष्टान्हिक नामक महापर्व का प्रथम दिवस है। यह महापर्व वर्ष में तीन बार आता है। यह आषाढ़, कार्तिक और फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा तक मनाया…
…..प्रतिज्ञा….. (१) सेठ हेमदत्त के घर की सजावट किसी राजमहल से कम नहीं दिख रही है, कहीं पर मोतियों की झालरें लटक रही हैं, कहीं पर मखमल के चंदोये बंधे हैं। दरवाजों-दरवाजों पर सुन्दर-सुन्दर रत्नों से जड़े हुए तोरण बंधे हुए हैं। कहीं पर रंग-बिरंगी काँच के झरोखे से छन-छन कर आती हुई सूर्य की…
……उपकार…….. (१) सिंहासन में जड़े हुए पंचवर्णी रत्नों पर सूर्य का प्रकाश पड़ने से स्फटिक पाषाण से निर्मित दीवालों पर इंद्रधनुष की शोभा झलक रही है। इससे अकाल में भी मेघों की आशंका हो जाने से कृत्रिम मयूर पंख पैâलाए हुए होने से मानों नाच ही रहे हैं। लटकती हुई फूलों की मालाओं से सुगंधि…