ज्ञानामृत भाग-5 01. भगवान ऋषभदेव 02. वर्तमान शासनपति तीर्थंकर भगवान महावीर 03. भगवान महावीर निर्वाणभूमि-पावापुरी जल मंदिर 04. कर्मभूमि का प्रारम्भीकरण 05. वीरशासन जयंती पर्व 06. क्या हम भी परमात्मा बन सकते हैं? 07. क्या पुण्यास्रव मोक्ष का कारण है? 08. व्रतों की स्थिरता के लिए भावनायें 09. अहिंसा व्रत 10. शेष चार व्रत 11....
ज्ञानामृत भाग-3 1. सरस्वती स्तोत्र ( हिन्दी पद्यानुवाद सहित ) 2. अनादि तीर्थ अयोध्या 3. भगवान शांतिनाथ 4. अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर 5. मनुष्यलोक 6. सप्तव्यसन त्याग ( श्री पद्मनंदिपंचविंशतिका के आधार से ) 7. मूलाचार सार (छह आवश्यक से पर्याप्ति अधिकार तक पूर्ण ) 8. नियमसार का सार 9. अष्टसहस्त्री सार 10. नंदीश्वर द्वीप...
ज्ञानामृत भाग-2 1. गणधरवलय मंत्र प्राकृत + हिन्दी पद्यानुवाद 2. अनादि जैनधर्म 3. भगवान शांतिनाथ, कुंथुनाथ, अरनाथ परिचय 4. २४ तीर्थकर जीवन दर्शन 5. भगवान बाहुबली- 6. मध्यलोक 7. जम्बूद्वीप 8. दिगम्बर जैन मुनि एवं आर्यिकाओं की दिनचर्या 9. श्रावक धर्म (वसुनन्दि श्रावकाचार के आधार से) 10. देवपूजा विधि व सामायिक (श्री पूज्यपाद स्वामी के...
ज्ञानामृत भाग-4 01. श्री ऋषभदेव स्तुतिः 02. भगवान ऋषभदेव एवं भगवान महावीर 03. अयोध्या में जन्में भगवान ऋषभदेव आदि पाँच तीर्थंकरों का परिचय 04. भगवान महावीर की अहिंसा 05. बारह अनुप्रेक्षा 06. चारित्र एवं नैतिकता - जैनदर्शन की दृष्टि में 07. चारित्र ही धर्म है 08. आत्मसंबोधन 09. मानव जीवन 10. कृतज्ञता महागुण है 11....
ज्ञानामृत भाग–1 01. णमोकार मंत्र का अर्थ 02. गृहस्थ धर्म 03. सम्यक्त्वसार 04. चारित्रप्राभृत सार 05. बोधप्राभृत सार 06. उपासक धर्म 07. दान 08. समयसार का सार 09. सप्त परमस्थान 10. सुदं मे आउस्संतो 11. गतियों से आने-जाने के द्वार 12. जीव के स्वतत्त्व 13. द्वादशांग श्रुतज्ञान का विषय 14. श्रुत पंचमी 15. पंचकल्याणक 16....
एम.ए.(पूर्वार्ध) इन जैनोलॉजी (चतुर्थ पत्र) "जैनधर्म" सम्प्रदाय नहीं, सार्वभौम धर्म है 01.1 सम्प्रदाय निरपेक्षता का पाठ पढ़ाता है जैनधर्म 01.2 जैनदर्शन आध्यात्मिकता की प्रयोगशाला है 01.3 आत्म स्वातंत्र्य का प्रतिपादक जैनधर्म जैनदर्शन के कतिपय प्रमुख विषय 02.1 जैनदर्शन में संसार स्वरूप 02.2 जैनदर्शन में छह द्रव्य एवं पंचास्तिकाय 02.3 जैनदर्शन में सात तत्त्व एवं नव...
एम.ए.(पूर्वार्ध) इन जैनोलॉजी (तृतीय पत्र) कर्म का स्वरूप एवं भेद-प्रभेद 01.1 प्राकृतिक कर्म व्यवस्था 01.2 अटल सिद्धान्त है कर्म का 01.3 कर्मबंध के कारण और प्रकार 01.4 कर्म के भेद-प्रभेद संसार भ्रमण के कारण-अष्टकर्म 02.1 आत्मा की प्रभा को धूमिल करने वाले ज्ञानावरण- दर्शनावरण 02.2 सुख-दुःख प्रदाता वेदनीय एवं कर्मों का राजा मोहनीय 02.3 चतुर्गति...
एम.ए.(पूर्वार्ध) इन जैनोलॉजी (द्वितीय पत्र) गृहस्थ से श्रावक बनने की प्रक्रिया 01.1 गृहस्थ धर्म 01.2 जैनागम में वर्णित श्रावक धर्म 01.3 गृहस्थों के अष्टमूलगुण 01.4 गृहस्थों के षट् आवश्यक कर्म गृहस्थों की आचार शुद्धि 02.1 उत्तम आचरण का आधार- शाकाहार 02.2 खानपान की शुद्धि परमावश्यक 02.3 मानव धर्म की विराट भूमिका 02.4 श्रावकाचार संग्रह में...