13. समुच्चय जयमाला
समुच्चय जयमाला चाल-हे दीनबन्धु………. जै जै प्रभो! तुम सिद्धि अंगना के कांत हो। जै जै प्रभो! आर्हन्त्य रमा के भी कांत हो।। हे नाथ! आपकी सभा अनुपम विशाल है। उसके लिए इस जग में न कोई मिसाल है।।१।। पृथ्वी से पाँच सहस धनुष उपरि गगन में। प्रभु आपका समवसरण है मात्र अधर में।। सोपान पंक्ति…