द्वादशांग वाणी स्तोत्र
द्वादशांग वाणी स्तोत्र…….. प्राकृत श्रुतभक्ति (श्री कुन्दकुन्ददेवकृत) सिद्धवरसासणाणं, सिद्धाणं कम्मचक्कमुक्काणं। काऊण णमुक्कारं, भत्तीए णमामि अंगाइं।।१।। -शंभुछंद (प्राकृत श्रुतभक्ति का पद्यानुवाद)- जिनका वर शासन जग प्रसिद्ध, जो कर्मचक्र से रहित सिद्ध। उनको कर नमस्कार भक्त्या, द्वादश अंगों को नमूँ नित्य१।।१।। आचार सूत्रकृत स्थान अंग, समवाय व व्याख्याप्रज्ञप्ती। है ज्ञातृधर्मकथनांग छठा, औ उपासकाध्ययनांग कृती।।२।। अंत:कृत्दश औ अनुत्तरोपपाददशक…