01. मंगलाचरण
सहस्रनाम विधान मंगलाचरण-शंभु छंद जिनवर! स्वयमेव स्वयं द्वारा, निज में निज हेतू ही निज को। उत्पन्न किया अतएव ‘स्वयंभू’ कहलाये वंदूं तुमको।। प्रभु तुम माहात्म्य अचिन्त्य कहा, अतएव कोटि कोटि वंदन। त्रिभुवन के स्वामी शत इन्द्रों, से वंद्य अत: तव अभिनन्दन।।१।। प्रभु तुम अनन्त संसार नष्ट, करके ‘अनंतजित’ कहलाये। मृत्यु को जीता ‘मृत्युंजय’ हो गये…