प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का जीवन दर्शन
“…प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का जीवन दर्शन…”
“…प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का जीवन दर्शन…”
“…जिनप्रतिमा के दर्शन का महत्त्व…” फलं ध्यानाच्चतुर्थस्य षष्ठस्योद्यानमात्रत:। अष्टमस्य तदारम्भे गमने दशमस्य तु।।१७८।। द्वादशस्य तत: किंचिन्मध्ये पक्षोपवासजम्। फलं मासोपवासस्य लभते चैत्यदर्शनात्।।१७९।। चैत्याङ्गणं समासाद्य याति षाण्मासिकं फलम्। फलं वर्षोपवासस्य प्रविश्य द्वारमश्नुते।।१८०।। फलं प्रदक्षिणीकृत्य भुङ्क्ते वर्षशतस्य तु। दुष्ट्वा जिनास्यमाप्नोति फलं वर्षसहस्रजम्।।१८१।। अनन्तफलमाप्नोति स्तुतिं कुर्वन् स्वभावत:। नहि भक्तेर्जिनेन्द्राणां विद्यते परमुत्तमम्।।१८२।। जो मनुष्य जिनप्रतिमा के दर्शन का चिन्तवन करता…
श्री ऋषभदेव पूजा -अथ स्थापना- तर्ज—ऐ माँ तेरी सूरत से अलग… जिनवर की शरण में आये हैं, तन-मन-धन अर्पण कर देंगे। भगवान-भगवान तेरी भक्ती के लिये, जीवन भी समर्पण कर देंगे।।टेक.।। शुभ नगरि अयोध्या की, धनपति ने रचना की। माता के आँगन में, रत्नों की वर्षा की।। आदीश्वर तीर्थंकर प्रभु का, शिर नत कर वंदन…
चतुर्विंशतिजिनस्तुति: -अनुष्टुप् छंद- पुरुदेव! नमस्तुभ्यं, युगादिपुरुषाय ते। इक्ष्वाकुवंशसूर्याय, वृषभाय नमो नम:।।१।। नमस्तेऽजितनाथाय, कर्मशत्रुजयाय ते। अजयेशक्ति-लाभार्थ-मजिताय नमो नम:।।२।। भवसंभवदु:खार्त्ति-नाशिने परमेष्ठिने। नमो संभवनाथाया-नंत विभवलब्धये।।३।। गुणसमृद्धियुक्ताय, जिनचंद्राय ते नम:। अभिनंदनदेवाय, नम: स्वगुणवृद्धये।।४।। ध्वस्तकुमतिदेवाय, जन्ममृत्युप्रमाथिने। नमो सुमतिनाथाय, सुष्ठुमतिप्रदायिने।।५।। मुक्तिपद्मासुकांताय, पद्मवर्ण! नमोस्तु ते। पद्मप्रभजिनेशाय, निजलक्ष्म्यै नमो नम:।।६।। भवपाशच्छिदे तुभ्यं, श्रीसुपार्श्व! नमो नम:। संसृतिपार्श्वदूराय, मुक्तिपार्श्वविधायिने।।७।। वागमृतकरैर्भव्य-पोषिणे जिनचंद्र! ते। नमो नमोऽस्तु चन्द्राय,…
श्री ऋषभदेव स्तुति: (दशावतारगर्भित) -अनुष्टुप् छंद- ऋषभेशं नमस्कृत्य, तस्यानंतगुणेष्वपि। स्वल्पगुणान् समादाय, भक्त्या मोदात् स्तवीम्यहम्।।१।। महाबलं नुमो नित्य-मतुल्यबलधारिणम्। जन्मातिशयसंयुक्त-मादिनाथं शिवाप्तये।।२।। अतीव सुंदरं रूपं, धारयन् वृषभेश्वर:। ललितांगो जयत्वत्र, स्वात्मसौंदर्यवानपि।।३।। वङ्कावत्स्थिरजंघाय, श्रेष्ठसंहननाय ते। नमोऽस्तु वङ्काजंघाय, ऋषभाय स्वशक्तये।।४।। अर्यते गुणवद्भिर्यो-ऽसावार्य: ऋषभो जिन:। पूज्यस्तस्मै नमो नित्यं, नानर्द्धिगुणप्राप्तये।।५।। अन्तर्लक्ष्मीधरोऽनन्त-गुणी बाह्यविभूतिमान्। समवादिसृतेर्भर्ता, श्रीधराय नमोऽस्तु ते।।६।। तीर्थकृत्प्रकृति: सुष्ठु, तां बद्ध्वा तीर्थनायक:। युगादावादिब्रह्मा यस्तस्मै…
श्री ऋषभदेव स्तोत्र श्रीछन्द:-(१ अक्षरी) ॐ, मां। सोऽ-व्यात्।।१।। स्त्रीछन्द:-(२ अक्षरी) जैनी, वाणी। सिद्धिं, दद्यात्।।२।। केसाछन्द:-(३ अक्षरी) गणीन्द्र!, त्वदंघ्रिं। नमामि, त्रिकालं।।३।। मृगीछन्द:-(३ अक्षरी) श्री-जिनै:, संततं। मे मन:, पूयताम्।।४।। नारीछन्द:-(३ अक्षरी) श्री-देवो, नाभेय:। वंदेऽहं, तं मूर्ध्ना।।५।। कन्याछन्द:-(४ अक्षरी) पू: साकेता, पूता जाता। त्वत्सूते: सा, सेंद्रैर्मान्या।।६।। व्रीडाछन्द:-(४ अक्षरी) महासत्यां, मरुदेव्यां। सुतोऽभूस्त्वं, जगत्पूज्य:।।७।। लासिनीछन्द:-(४ अक्षरी) युगादिजो, जिनेश्वर:। ददातु मे,…
श्री ऋषभदेव स्तुति (हिन्दी) -शंभुछंद- हे आदिनाथ! हे आदीश्वर! हे ऋषभ जिनेश्वर! नाभिललन! पुरुदेव! युगादि पुरुष ! ब्रह्मा, विधि और विधाता मुक्तिकरण।। मैं अगणित बार नमूँ तुमको, वन्दूँ ध्याउँâ गुणगान करूँ। स्वात्मैक परम आनन्दमयी, सुज्ञान सुधा का पान करूँ।।१।। आषाढ़ बदी दुतिया तिथि थी, मरुदेवी गर्भ पधारे थे। श्री-ह्री-धृति आदि देवियों ने, माता के चरण…
श्री आदिनाथ स्तुति: (सप्तविभक्ति समन्वित) (४) -अनुष्टुप् छंद:- आदिनाथो जगत्स्वामी, प्रथमस्तीर्थकृन्मत:। आदिनाथमहं नित्य-माश्रयामि हितेच्छया।।१।। आदिनाथेन सृष्टि: स्यात्, षट्स्वकर्मविधायिनी। आदिनाथाय मे नित्य-मनंतशो नमो नम:।।२।। आदिनाथाद् जिनो धर्म:, गृहि-मुन्योर्द्विभेदत:। आदिनाथस्य पुत्रास्ते, शतैका हि शिवंगता:।।३।। आदिनाथे स्थिरा बुद्धि:, मे स्याद् भवान्तकारिणी। हे आदिनाथ! मां रक्ष, भवाद् भव्यांश्च सर्वदा।।४।।
श्री ऋषभदेव स्तुति: (सप्तविभक्ति सहित) (१) प्रभु: ऋषभदेवस्त्वं, जगत्सृष्टा जगद्गुरू:। ऋषभदेवमानौमि, सर्वसिद्धिप्रदायकम्।।१।। हत: ऋषभदेवेन, स्वकर्मनिचय: स्वयं। नम: ऋषभदेवाय, धर्मतीर्थप्रवर्तिने।।२।। तीर्थं ऋषभदेवाद् हि, स्वर्गमोक्षविधायकं। धर्म: ऋषभदेवस्य, साधुगृहि-द्विभेदत:।।३।। भक्तिं ऋषभदेवेऽहं, करोमि सर्वसौख्यदाम्। ऋषभदेव! मां रक्ष, निमज्जंतं भवाम्बुधौ।।४।। (२) ऋषभो युगब्रह्मा त्वं, ऋषभमाश्रयाम्यहम्। ऋषभेण हतो मृत्यु:, ऋषभाय नमो नम:।।१।। ऋषभाज्जीवनोपाय:, ऋषभस्य वृषो दया। ऋषभे स्यात् स्थिरा भक्ति:, पाहि…
मंगलाचरण (श्री गौतमस्वामीकृत वंदना) चउवीसाए अरहंतेसु। अट्ठावयपव्वदे सम्मेदे उज्जंते चंपाए पावाए……….जावो अण्णाओ कावो वि णिसीहियाओ…..णमंसामि। यावन्ति संति लोकेऽस्मिन्नकृतानि कृतानि च। तानि सर्वाणि चैत्यानि, वंदे भूयांसि भूतये१।। तीर्थंकर अर्हंत भगवान चौबीस हैं। अष्टापद पर्वत-कैलाश पर्वत, सम्मेदशिखर, उज्जंते-ऊर्जयंतगिरि-गिरनारपर्वत, चंपापुरी, पावापुरी ये निर्वाणभूमि-सिद्धक्षेत्र हैं। इनसे अतिरिक्त और जो भी निषीधिका स्थान-मांगीतुंगी पर्वत आदि तथा तीर्थंकर भगवन्तों की गर्भ,…