प्रशस्ति
प्रशस्ति… -शंभु छंद- त्रिभुवन में धर्म वही उत्तम, जो श्रेष्ठ सुखों में धरता है। सांसारिक सभी सौख्य देकर, मुक्ती पद तक पहुँचाता है।। इस रत्नत्रयमय धर्मतीर्थ के, कर्ता तीर्थंकर बनते। इनको प्रणमूँ मैं बार बार, ये सर्व आधि व्याधी हरते।।१।। श्री महावीर के शासन में, श्री कुंदकुंद आम्नाय प्रथित। सरस्वतीगच्छ गण बलात्कार से, जैन दिगम्बर…