08. श्री विनयलालस महर्षि पूजा
(पूजा नं. 7) श्री विनयलालस महर्षि पूजा -स्थापना- तर्ज-परदेशी-परदेशी………. ऋषिवर जी, मुनिवर जी, करते हैं हम-२, पूजन तेरी- हाँ पूजन …
(पूजा नं. 7) श्री विनयलालस महर्षि पूजा -स्थापना- तर्ज-परदेशी-परदेशी………. ऋषिवर जी, मुनिवर जी, करते हैं हम-२, पूजन तेरी- हाँ पूजन …
(पूजा नं. 6) श्री जयवान् महर्षि पूजा -स्थापना-(अडिल्ल छंद)- श्री जयवान् ऋषी की जय जय कीजिए। अष्ट द्रव्य से उनकी पूजन कीजिए।। पूजन से पहले स्थापन कीजिए। निज मन में उनका आह्वानन कीजिए।। ॐ ह्रीं श्रीजयवान्महर्षे! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्रीजयवान्महर्षे! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं। …
(पूजा नं. 5) श्रीसर्वसुन्दर महर्षि पूजा -स्थापना-(अडिल्ल छंद)- रामचन्द्र के समय सप्तऋषि थे हुए। जिनके तप से जन जन मन पावन हुए।। उनमें चौथे ऋषी सर्वसुन्दर कहे। उनकी पूजा हेतू आह्वानन करें।।१।। ॐ ह्रीं श्रीसर्वसुन्दरमहर्षे! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्रीसर्वसुन्दरमहर्षे! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं। ॐ…
(पूजा नं. 4) श्रीनिचय महर्षि पूजा -स्थापना- सप्तऋषी में तीसरे, हैं श्रीनिचय ऋषीश। उनकी पूजन हेतु मैं, नमूँ नमाकर शीश।।१।। आह्वानन स्थापना, सन्निधिकरण महान। करके मन में भावना, है हो मम कल्याण।।२।। ॐ ह्रीं श्रीनिचयमहर्षे! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
(पूजा नं. 3) श्रीमन्यु महर्षि पूजा -स्थापना-(माता तेरे चरणों में…)- गुरुवर तेरे चरणों में हम वंदन करते हैं। श्रीमन्यु मुनीश्वर का, हम अर्चन करते हैं।।टेक.।। सप्तर्षि में श्रीमन्यू, हैं दुतिय ऋषीश्वर जी। चारणऋद्धी संयुत, उन महामुनीश्वर की।। उनका आह्वानन कर, स्थापन करते हैं। श्रीमन्यु मुनीश्वर का, हम अर्चन करते हैं।।१।। ॐ ह्रीं श्री श्रीमन्युमहर्षे!…
(पूजा नं. 2) श्री सुरमन्यु महर्षि पूजा -स्थापना-(दोहा)- श्री सुरमन्यु ऋषीश की, पूजा करूँ त्रिकाल। आह्वानन स्थापना, करूँ बसो मन आन।।१।। ॐ ह्रीं श्रीसुरमन्युऋषीश्वर! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्रीसुरमन्युऋषीश्वर! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं। ॐ ह्रीं श्रीसुरमन्युऋषीश्वर! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् …
(पूजा नं. 1) श्री सप्तऋषि पूजा (समुच्चय पूजा) -स्थापना-(अडिल्ल छंद)- सुरमन्यू श्रीमन्यु आदि ऋषि सात हैं। चारण ऋद्धि समन्वित जो विख्यात हैं।। मथुरापुरि में चमत्कार इनका हुआ। रोग महामारी इन तप से भग गया।।१।। -दोहा- इन सातों ऋषिराज की, पूजा करें महान। रोग शोक की शांति हित, करें प्रथम आह्वान।।२।। ॐ ह्रीं चारणऋद्धिसमन्वित श्रीसुरमन्यु-श्रीमन्यु-श्रीनिचय-सर्वसुन्दर-जयवान- विनयलालस-जयमित्रनाम-सप्तऋषिसमूह!…
सप्तऋषि पूजा सप्तऋषि वंदना तर्ज-पंखिड़ा………. वंदना करूँ मैं सप्तऋषिराज की। गगन गमन ऋद्धिधारी मुनिराज की।।वंदना….।।टेक.।। सात भाइयों ने एक साथ दीक्षा ले लिया। विषय भोग हैं असार सबको शिक्षा…
पूजा नं.-6 प्रकीर्णक तारक जिनालय पूजा अथ स्थापना-शंभु छंद एकेक शशि के प्रकीर्णक, तारे चमकते गगन में। छ्यासठ सहस नौ सौ पचहत्तर कोटिकोटी अधर में।। ये अर्ध गोलक सम इन्हों के, मध्य ऊँचे कूट हैं। उन पर जिनेश्वर धाम पूजूँ, जैन प्रतिमा युक्त हैं।।१।। ॐ ह्रीं मध्यलोके प्रकीर्णकताराविमानस्थितसंख्यातीतजिनालयजिनबिम्बसमूह! अत्र अवतर-अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
पूजा नं.-5 नक्षत्र जिनालय पूजा अथ स्थापना-गीता छंद एकेक शशि के नखत अट्ठाईस नभ में चमकते। सब अर्ध गोलक सदृश निचले भाग से ही दमकते।। इन सब विमानन मध्य स्वर्णिम कूट पर जिनधाम हैं। पूजूँ जिनेश्वर बिंब मैं आह्वान कर इत ठाम हैं।।१।। ॐ ह्रीं मध्यलोके नक्षत्र विमानस्थितसंख्यातीतजिनालयजिनबिम्बसमूह! अत्र अवतर-अवतर संवौषट् आह्वाननं। …