02. उत्तम क्षमाधर्म पूजा
(पूजा नं.-2) उत्तम क्षमाधर्म पूजा -स्थापना- तर्ज-रोम-रोम से………….. जनम जनम में पाऊँ, जिनवर दर्श तुम्हारा। हाँ दर्श तुम्हारा…….. …
(पूजा नं.-2) उत्तम क्षमाधर्म पूजा -स्थापना- तर्ज-रोम-रोम से………….. जनम जनम में पाऊँ, जिनवर दर्श तुम्हारा। हाँ दर्श तुम्हारा…….. …
(पूजा नं.-1) समुच्चय पूजा -दोहा- पर्व अनादि अनंत है, दशलक्षणमय धर्म। होता भव का अंत है, करें यदी शुभकर्म।।१।। धर्म नाम से हैं क्षमा, मार्दव आर्जव भाव। शौच सत्य संयम तथा, तप अरु त्याग स्वभाव।।२।। आकिंचन्य व ब्रह्मचर्य, हैं धर्मों के सार। इनकी पूजन से करूँ, मुक्तिपंथ साकार।।३।। ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्मसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट्…
समुच्चय जयमाला चाल-हे दीनबन्धु………. जै जै प्रभो! तुम सिद्धि अंगना के कांत हो। जै जै प्रभो! आर्हन्त्य रमा के भी कांत हो।। हे नाथ! आपकी सभा अनुपम विशाल है। उसके लिए इस जग में न कोई मिसाल है।।१।। पृथ्वी से पाँच सहस धनुष उपरि गगन में। प्रभु आपका समवसरण है मात्र अधर में।। सोपान पंक्ति…
पूजा नं. 11 स्थापना-शंभु छंद पाँच भरत पण ऐरावत में चौथा काल जभी हो। चौबीस चौबिस तीर्थंकर प्रभु जन्म धरें सुकृती हो।। इक सौ साठ विदेह क्षेत्र में सतत तीर्थंकर होते। इन सबका आह्वानन कर हम, भव भव कल्मष धोते।।१।। ॐ ह्रीं तीर्थंकराणां दिग्वाससादिअष्टोत्तरशतनाममंत्र समूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
पूजा नं. 10 स्थापना-गीता छंद जो भव्य मुनिगण वंद्य तीर्थंकर चरण को वंदते। वे निज अनंतानंत जन्मों के अघों को खंडते।। इस हेतु से हम भक्ति श्रद्धा भाव से उनको जजें। आह्वान विधि से पूज कर निज आत्म समरस को चखें।। ॐ ह्रीं तीर्थंकराणां त्रिकालदर्श्यादिशतनाममंत्र समूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
पूजा नं. 9 स्थापना-शंभु छंद त्रिभुवन के ज्ञाता मोक्षमार्ग के नेता तीर्थंकर होते। ये कर्मभूमिभृत् के भेत्ता, सब राग द्वेष विरहित होते।। सर्वज्ञ वीतरागी हित के उपदेशी प्रभु त्रिभुवन गुरू हैं। आह्वानन कर मैं नित पूजूँ, ये सर्व हितंकर जिनवर हैं।। ॐ ह्रीं तीर्थंकराणां बृहद्वृहस्पत्यादिशतनाममंत्र समूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
पूजा नं. 8 स्थापना-गीता छंद जो गणधरों से वंद्य हैं बारह सभा के नाथ हैं। निज भक्त को संसार में करते सदैव सनाथ हैं।। उन तीर्थकर जिनदेव को मैं आज पूजूँ भाव से। निज आत्म निधि की प्राप्ति हो अतएव थापूँ चाव से।।१।। ॐ ह्रीं तीर्थंकराणां असंस्कृतसुसंस्कारादिशतनाममंत्र समूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
पूजा नं. 7 स्थापना-नरेन्द्र छंद भव्यजनों को भववारिधि से, कैसे पार करूँ मैं। अतिकरुणा से धर्मध्यानमय भाव धरें नित मन में।। ऐसे धार्मिक मनुज तीर्थंकर प्रकृति बंध करते हैं। उन तीर्थंकरों को जजते ही शिव लक्ष्मी वरते है।।१।। ॐ ह्रीं तीर्थंकराणां महामुनिआदिशतनाममंत्र समूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
पूजा नं. 6 स्थापना-गीता छंद तीर्थंकरों के नाम सार्थक गुणगणों से पूर्ण हैं। इन्द्रादिगण गाते सदा अतएव अतिशय पूर्ण हैं।। त्रैलोक्य वंदित उन प्रभू की मैं करूँ इत थापना। पूजूँ अतुल गुरू भक्ति से, चाहूँ सदा हित आपना।।१।। ॐ ह्रीं तीर्थंकराणां श्रीवृक्षलक्षणादिशतनाममंत्र समूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
पूजा नं. 5 स्थापना-्नारेन्द्र छंद मोक्षमार्ग के नेता त्रिभुवन वेत्ता वर तीर्थंकर। चिच्चैतन्य सुधारस प्यासे, भविजन को क्षेमंकर।। उनको इत आह्वानन करके, पूजूँ मन वच तन से। आतम अनुभव अमृत हेतू वंदूँ अंजलि करके।।१।। ॐ ह्रीं तीर्थंकराणां महाशोकध्वजादिशतनाममंत्र समूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …