03. सिद्धों के आठ गुणों की पूजा
सिद्धों के आठ गुणों की पूजा -अथ स्थापना (तर्ज-तुमसे लागी लगन……)- नाथ! त्रिभुवनपती, पाई पंचमगती, इन्द्र आये। भक्ति से आपको शिर झुकायें।। …
सिद्धों के आठ गुणों की पूजा -अथ स्थापना (तर्ज-तुमसे लागी लगन……)- नाथ! त्रिभुवनपती, पाई पंचमगती, इन्द्र आये। भक्ति से आपको शिर झुकायें।। …
श्री कर्मदहन पूजा -अथ स्थापना (शंभु छंद)- हे सिद्ध प्रभो! तुम आठ कर्म, विरहित गुण आठ समन्वित हो। अष्टमि पृथिवी पर तिष्ठ रहे, ज्ञानाम्बुधि सिद्धरमापति हो।। समतारस आस्वादी मुनिगण, नित सिद्ध गुणों को ध्याते हैं। हम पूजें तुम आह्वानन कर, जिससे सब कर्म नशाते हैं।। ॐ ह्रीं सर्वकर्मविनिर्मुक्त-श्रीसिद्धपरमेष्ठिसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
श्री कर्मदहन विधान मंगलाचरण -शेर छंद- सिद्धों को नमूँ हाथ जोड़ शीश नमा के। ये सिद्धि सौख्य दे रहे हैं पाप नशाके।। अर्हंतदेव को नमूँ ये मुक्ति के नेता। आचार्य उपाध्याय साधु धर्म प्रणेता।।१।। ये साधु कर्म नाशने में बद्ध कक्ष हैं। अर्हंतदेव चार घातिकर्म मुक्त हैं।। सिद्धों ने सर्व कर्म को निर्मूल कर दिया।…
पूजा नं. 2 श्री पार्श्वनाथ जिनपूजा अथ स्थापना—शंभु छंद (तर्ज—यह नंदनवन….) श्री पार्श्व प्रभू, त्रिभुवन के विभू, हम पूजा करने आये हैं। निज आत्म सुधारस मिल जावे, यह आशा लेकर आये हैं।।टेक।। आह्वानन संस्थापन करके, सन्निधीकरण विधि करते हैं। निज हृदय कमल में धारण कर, अज्ञान तिमिर को हरते हैं।। कमठारिजयी प्रभु क्षमाशील, की अर्चा…
पूजा नं. 1 श्री कलिकुंड पूजा सिद्धं विशुद्धं महिमानवेशं। दुष्टारिमारि ग्रहदोषनाशं। सर्वेषु योगेषु परं प्रधानं। संस्थापये श्रीकलिकुंडयंत्रं।।१।। ॐ ह्रीं श्रीं ऐं अर्हं श्रीकलिकुंडपार्श्वनाथ! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं। अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् स्वाहा सन्निधापनं। …
कालसर्पहर श्री पार्श्वनाथ विधान मंगलाचरण -उपजाति छंद- कल्याणकल्पद्रुमसारभूतं, चिंतामणि चतितदानदक्षम्। श्री पार्श्वनाथस्य सुपादपद्मं, नमामि भक्त्या परया मुदा च।।१।। श्री पार्श्वनाथस्य नमोऽस्तु तुभ्यं। दु:खार्तिनाशाय नमोऽस्तु तुभ्यं।। अभीप्सितार्थाय नमोऽस्तु तुभ्यं। त्रैलोक्यनाथाय नमोऽस्तु तुभ्यं।।२।। -उपेंद्रवङ्काा छंद- भवे भवे दैत्यकृतोपसर्गं, सोढ्वा क्षमावान् जिनराजराज:। महामना: पार्श्वजिन: स्तुवे त्वां, सर्वंसहा मे कुरु नाथ! शक्तिम्।।३।। श्री पार्श्वनाथ स्तोत्र -शंभु छंद- भवसंकट हर्ता…
बड़ी जयमाला तर्ज-माई रे माई…………..…. गुरुभक्ती के लिए अर्घ्य का, थाल सजाकर लाए। सप्तऋषी की पूजाकर, जयमाल बड़ी हम गाएँ।। जय…
(पूजा नं. 8) श्री जयमित्र महर्षि पूजा तर्ज-झुमका गिरा रे……….. पूजन करो जी, …
(पूजा नं. 7) श्री विनयलालस महर्षि पूजा -स्थापना- तर्ज-परदेशी-परदेशी………. ऋषिवर जी, मुनिवर जी, करते हैं हम-२, पूजन तेरी- हाँ पूजन …
(पूजा नं. 6) श्री जयवान् महर्षि पूजा -स्थापना-(अडिल्ल छंद)- श्री जयवान् ऋषी की जय जय कीजिए। अष्ट द्रव्य से उनकी पूजन कीजिए।। पूजन से पहले स्थापन कीजिए। निज मन में उनका आह्वानन कीजिए।। ॐ ह्रीं श्रीजयवान्महर्षे! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्रीजयवान्महर्षे! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं। …