चौंसठ ऋद्धि विधान की आरती
चौंसठ ऋद्धि विधान की आरती तर्ज—तन डोले……………….. जय जय ऋषिवर, हे ऋद्धीश्वर, की मंगल दीप प्रजाल के, मैं आज उतारूं आरतिया।टेक.।। तीन न्यून नव कोटि मुनीश्वर, ढाई द्वीप में होते। घोर तपस्या के द्वारा, निज कर्म कालिमा धोते।।गुरू जी….. गणधर भी हैं, श्रुतधर भी हैं, इन मुनियों में सरताज वे मैं आज उतारूं आरतिया।।१।। वृषभसेन…