अथ १०८ अर्घ्य
“…अथ १०८ अर्घ्य…” —दोहा— महावीर प्रभु बालयति, नमूं नमूं शत बार। पुष्पांजलि से पूजते, पाऊं सौख्य अपार।।१।। ।।अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।। ‘श्रीवृक्षलक्षण’ प्रभो! तरु अशोक से सिद्ध। शोक हरण हे वीर जिन! नमत मिले नव निद्धि।।१।। ॐ ह्रीं श्रीवृक्षलक्षणाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। अनंत लक्ष्मी से तुम्हीं, आलिंगित हो ‘श्लक्षण’। गुण अनंत मेरे सभी, मिलते…