01. नवदेवता पूजन
नवदेवता पूजन …
श्री नेमिनाथ पूजा -अथ स्थापना- (तर्ज-करो कल्याण आतम का……) नमन श्री नेमि जिनवर को, जिन्होंने स्वात्मनिधि पायी। तजी राजीमती कांता, तपो लक्ष्मी हृदय भायी।। करूँ आह्वान हे भगवन्! पधारो मुझ मनोम्बुज में। करूँ…
भगवान नेमिनाथ विधान -मंगलाचरण- राजीमतिं परित्यज्य, महादयार्द्रमानस:। लेभे सिद्धिवधूं सिद्ध्यै, नेमिनाथ! नमोऽस्तु ते।। शार्दूलविक्रीडित छंद- यावन्नो प्रभवेच्च नेमि भगवन्!…
महावीर समवसरण विधान महावीर वंदना वसंततिलकाछंद- सिद्धार्थराजकुलमण्डनवीरनाथः। जातः सुकुण्डलपुरे त्रिशलाजनन्यां।। सिद्धिप्रियः सकलभव्यहितंकरो यः। श्रीसन्मतिर्वितनुतात् किल सन्मतिं मे।।१।। कैवल्यबोधरविदीधितिभिःसमन्तात् । दुष्कर्मपंकिलभुवं किल शोषयन् यः।। भव्यस्य चित्तजलज-प्रविबोधकारी। तं सन्मतिं सुरनुतं सततं स्तवीमि।।२।। पावापुरे सरसि पद्मयुते मनोज्ञे। योगं निरुध्य खलु कर्म वनं ह्यधाक्षीत् ।। लेभे सुमुक्तिललना-मुपमाव्यतीताम्। भेजे त्वनन्तसुखधाम नमोऽस्तु तस्मै।।३।। शिखरिणीछंद- …
श्री समवसरण विधान (मंगलाचरण) -दोहा- समवसरण में राजते, तीर्थंकर भगवंत। नमूँ अनंतो बार मैं, पाऊँ सौख्य अनंत।।१।। -शंभु छंद- कैवल्य सूर्य के उगते ही, प्रभु समवसरण गगनांगण में। पृथ्वी से बीस हजार हाथ, ऊपर पहुँचे अर्हंत बनें।। सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से, तत्क्षण ही धनपति आ करके। बस अर्धनिमिष में समवसरण, रच देता दिव की…
बड़ी जयमाला -दोहा- घाति चतुष्टय घातकर, प्रभु तुम हुये कृतार्थ। नवकेवल लब्धीरमा, रमणी किया सनाथ।।१।। -शेरछंद- प्रभु दर्श मोहनीय को निर्मूल किया है। सम्यक्त्व क्षायिकनाम को परिपूर्ण किया है।। चारित्र मोहनीय का विनाश जब किया। क्षायिक चरित्र नाम यथाख्यात को लिया।।२।। संपूर्ण ज्ञानावर्ण का जब आप क्षय किया। कैवल्यज्ञान से त्रिलोक ज्ञान जब लिया।। प्रभु…
(पूजा नं.14) तीर्थंकर गुण पूजा -अथ स्थापना- -शंभु छंद- जो पंच कल्याणक के स्वामी, तीर्थंकर पद के धारी हैं। उनका ही समवसरण बनता, जिसकी शोभा अतिन्यारी है।। यद्यपि उनके गुण हैं अनंत, फिर भी छ्यालिस गुण विख्याते। उनका आह्वानन कर पूजें, वे मेरे सब गुण विकसाते।।१।। ॐ ह्रीं षट्चत्वारिंशद्गुणमंडितचतुर्विंशतितीर्थंकरसमूह! अत्र अवतर अवतर…
(पूजा नं.13) गंधकुटी पूजा -अथ स्थापना- -अडिल्ल छंद- समवसरण जिन खिले कमलवत् शोभता। गंधकुटी है उसमें मानों कर्णिका।। चामर किंकणी वंदन माला हार से। शोभे अतिशय गंधकुटी पूजूं उसे।।२।। ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरसमवसरणस्थितगंधकुटीसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
(पूजा नं.12) द्वितीय पीठ पूजा -अथ स्थापना- -अडिल्ल छंद- समवसरण में पीठ दूसरा स्वर्ण का। आठ दिशा में आठ ध्वजायें वर्णिता।। नव निधि मंगल द्रव्य धूप घट शोभते। पूजूं भक्ति बढ़ाय, सर्वमन मोहते।।१।। ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरसमवसरणस्थितद्वितीयपीठोपरिअष्ट- अष्टमहाध्वजासमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरसमवसरणस्थितद्वितीयपीठोपरिअष्ट- अष्टमहाध्वजासमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ…