01. श्री समवसरण विधान
श्री समवसरण विधान (पूजा नं.1) समवसरण पूजा (समुच्चय पूजा) -अथ स्थापना-गीता छंद- तीर्थंकरों की सभाभूमी, धनपती रचना करें। है समवसरण सुनाम उसका, वह अतुलवैभव धरे।। जो घातिया को घातते, कैवल्यज्ञान विकासते। वे इस सभा के मध्य अधर, सुगंधकुटि पर राजते।।१।। -दोहा- अनंत चतुष्टय के धनी, तीर्थंकर चौबीस। आह्वानन कर मैं जजूँ, नमूँ नमूँ नत शीश।।२।।…