(५६) कवलचान्द्रायण व्रत विधि
(५६) कवलचान्द्रायण व्रत विधि योऽमावास्योपवासी प्रतिपदि कवलाहारमात्र: पुरस्तात्। तद्वृद्ध्या पौर्णमासीमुपवनयुतो र्हासयन्ग्रासमग्रे।। सामावास्योपवास: स भजति तपसश्चंद्रगत्यानुपूर्व्या। चार्व्या चांद्रायणस्य प्रविततयशस: कर्तृण: कर्तृभावं।।८।। (जिनसेनाचार्य विरचित हरिवंश पु. सर्ग ३४) अर्थ—इस कवल चांद्रायण व्रत की विधि को जिनसेन स्वामी ने हरिवंश पुराण में इस प्रकार बताई है कि—अमावस्या को उपवास करके शुक्लपक्ष की प्रतिपदा को एक ग्रास, द्वितीया को…