जैनधर्म की व्याख्या-
जैनधर्म की व्याख्या- जो कर्म शत्रुओं को जीत लेते हैं वे ‘जिन’ कहलाते हैं। यथा ‘‘कर्मारातीन् जयतीति जिन:’’ तथा ये जिनदेव जिनके आराध्य देव हैं वे ‘‘जैन’’ कहलाते हैं-‘जिनो देवतास्येति जैन:’। धर्म की व्युत्पत्ति है-‘उत्तमे सुखे धरतीति धर्म:’ जो प्राणियों को स्वर्ग-मोक्षरूप उत्तम सुख में ले जाकर धरे-पहुँचावे, वही सर्वोत्तम धर्म है और वह धर्म…