मुनिधर्म (सराग चारित्र)
मुनिधर्म (सराग चारित्र) बारह अनुप्रेक्षा— अद्धुवमसरणमेगत्त-मण्णसंसारलोगमसुचित्तं। आसवसंवर णिज्जर, धम्मं बोिंह च िंचतेज्जो।।३७।। (द्वादशानुप्रेक्षा गाथा-२) शंभु छन्द— अध्रुव-अशरण-एकत्व और, अन्यत्व तथा संसार-लोक। अशुचित्व तथा आस्रव संवर, निर्जरा-धर्म अरु ज्ञान बोध।। इन द्वादश अनुप्रेक्षाओं का, चिंतन साधू जो करते हैं। उनकी आत्मा में तीव्ररूप, वैराग्यभाव परिणमते हैं।।३७।। अर्थ—अनित्य, अशरण, एकत्व, अन्यत्व, संसार, लोक, अशुचित्व, आस्रव, संवर, निर्जरा,…