(प्रथम वलय में २७ अर्घ्य)
(प्रथम वलय में २७ अर्घ्य) अथ प्रथमवलये पुष्पांजलिं क्षिपेत्। -शंभु छंद- मन वचन काय त्रय योग कहे, संमरंभ समारंभ आरंभा। कृत कारित अनुमति चउकषाय, इनको आपस में गुणितांता।। सब इक सौ आठ भेद होते, जो क्रोध करे मन संरंभ से। इस रहित सुपार्श्वनाथ पूजूँ, मेरा मन क्रोध सभी विनशे।।१।। ॐ ह्रीं क्रोधकृतमन:संरंभमुक्ताय श्रीसुपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति…