जिनवाणी पूजा
जिनवाणी पूजा -शंभु छंद- तीर्थंकर के मुख से खिरती, अनअक्षर दिव्यध्वनी भाषा। बारह कोठों में सबके हित, परिणमती सर्वजगत भाषा।। गणधर गुरु जिन ध्वनि को सुनकर, बारह अंगों में रचते हैं। हम दिव्यध्वनि का आह्वानन, करके भक्ती से यजते हैं।।१।। ॐ ह्रीं तीर्थंकरमुखकमलविनिर्गतसर्वभाषामयदिव्यध्वनिवाणी समूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं तीर्थंकरमुखकमलविनिर्गतसर्वभाषामयदिव्यध्वनिवाणी समूह! अत्र तिष्ठ…