14. सिद्ध पूजा
सिद्ध पूजा स्थापना—गीताछंद श्री सिद्ध परमेष्ठी अनंतानंत त्रैकालिक कहे। त्रिभुवन शिखर पर राजते वह सासते स्थिर रहे।। वे कर्म आठों नाश कर, गुण आठधर कृतकृत्य हैं। कर थापना मैं पूजहूँ, उनको नमें नित भव्य हैं।।१।। ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिसमूह! अत्र अवतर-अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।…