(प्रथम वलय में ८४ अर्घ्य)
(प्रथम वलय में ८४ अर्घ्य) —सोरठा— स्वानुभूति से आप, नित आतम अनुभव करेंं। द्वादश गण के नाथ, पुष्पांजलि कर पूजहूँ।।१।। अथ प्रथमवलये मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्। (श्रीऋषभदेव के ८४ गणधर देवों के अर्घ्य) —शंभु छंद— श्रीऋषभदेव के तृतीय पुत्र, मां यशस्वती के नंदन हो। तज पुरिमतालपुर नगर राज्य, मुनि बने जगत अभिनंदन हो।। सब ऋद्धि समन्वित…