सुमेरु पर्वत का चित्र
सुमेरु पर्वत का चित्र
कौन तिर्यंच कहाँ तक जन्म ले सकते हैं? पृथ्वी आदि पाँच स्थावर, विकलत्रय ये जीव कर्म भूमिज मनुष्य या तिर्यंचों में उत्पन्न होते हैं। विशेष इतना है कि अग्निकायिक, वायुकायिक जीव मरकर उसी भव से मनुष्य नहीं हो सकते हैं। असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्यंत सभी जीव भोगभूमि में नारकियों में उत्पन्न नहीं होते हैं। विशेषता यह…
सम्यक्त्व के कारण इन तिर्यंचों में कितने ही तिर्यंच उपदेश श्रवण से, कितने ही स्वभाव से, कितने ही जातिस्मरण से, प्रथमोपशम और वेदक सम्यक्त्व को ग्रहण कर लेते हैं।
तिर्यंचों की उत्पत्ति-गुणस्थान आदि का वर्णन तिर्यंचों की उत्पत्ति गर्भ और सम्मूर्च्छन जन्म से ही होती है। इनकी योनियाँ ६२ लाख प्रमाण हैं-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, नित्य निगोद, इतर निगोद इन छहों की ७-७ लाख, वनस्पति की १० लाख, विकलत्रय की ६ लाख, पंचेन्द्रियों की ४ लाख इस प्रकार से ७²६·४२±१०±६±४·६२ लाख हैं। सभी भोग…
तिर्यंचों की आयु शुद्ध पृथ्वी की उत्कृष्ट आयु १२००० वर्ष, खर पृथ्वी की १००० वर्ष जलजीव की ७००० वर्ष, अग्निकायिक की ३ दिन, वायुकाय की ३००० वर्ष, वनस्पति की १०००० वर्ष है। दो इंद्रिय की उत्कृष्ट आयु १२ वर्ष, तीन इंद्रियों की ४९ वर्ष, चार इंद्रियों की ६ माह, पंचेन्द्रियों में सरीसृप की नौ पूर्वांग,…
तिर्यंचों की भोगभूमि-कर्मभूमि व्यवस्था पुष्कर द्वीपस्थ मानुषोत्तर पर्वत से उधर अर्ध पुष्कर द्वीप से लेकर स्वयंभूरमण द्वीपस्थ स्वयंप्रभ पर्वत के इधर-उधर असंख्यातों द्वीपों में भोगभूमि व्यवस्था है यहाँ के तिर्यंच युगलिया उत्पन्न होते हैं। एक पल्य आयु से सहित ये भोगभूमिज तिर्यंच जघन्य भोगभूमि के सुखों का अनुभव करते हैं। स्वयंप्रभ पर्वत के बाह्य अर्ध…
स्वयंभूरमण द्वीप सब द्वीपों में अंतिम द्वीप ‘स्वयंभूरमण नाम वाला है इसके मध्य में मंडलाकार स्वयंप्रभ पर्वत स्थित है यह पर्वत तटवेदी वन, उपवन से सहित रत्नों से देदीप्यमान है। मानुषोत्तर पर्वत, कुण्डलवर पर्वत, रुचकवर पर्वत एवं स्वयंप्रभ पर्वत ये चारों पर्वत वर्तुलाकार-वलयाकार से अपने-अपने द्वीप के मध्य में स्थित हैं।
दूसरा जम्बूद्वीप इस जम्बूद्वीप के आगे संख्यात समुद्र व द्वीपों के बाद अतिशय रमणीय दूसरा जम्बूद्वीप है वहाँ पर वङ्काापृथ्वी के ऊपर चित्रा के मध्य में पूर्र्वादिक दिशाओ में ‘विजय’ आदि देवों की दिव्य नगरियाँ हैं। ये नगरियाँ उत्सेधयोजन से बारह हजार योजन विस्तृत, जिन भवनों से सुंदर, उपवन वेदियों से युक्त हैं। इनके प्राकार…
मध्यलोक में ४५८ चैत्यालय पूर्वोक्त मानुषोत्तर पर्वत तक मनुष्य लोक के चैत्यालय ३९८ हैं उनमें नंदीश्वर के ५२, कुण्डलवर व रुचकवर द्वीप के ४-४ मिला देने से ३९८±५२±४±४·४५८ चैत्यालय हैं उनमें विराजमान सभी जिनप्रतिमाओं को मेरा मन, वचन, काय से बारम्बार नमस्कार होवे।
तेरहवां रुचकवर द्वीप तेरहवां द्वीप ‘रुचकवर’ नाम से प्रसिद्ध है। इसके मध्य भाग में सुवर्णमय रुचकवर पर्वत स्थित है। इस पर्वत का विस्तार सर्वत्र ८४००० योजन एवं ऊँचाई भी इतनी ही है इसकी नींव १००० योजनमात्र है। इस पर्वत के मूल व उपरिम भाग में वनवेदी आदि से विशेष रमणीय, तटवेदियाँ व उपवन स्थित हैं।…