व्रतारोपिणी क्रिया
व्रतारोपिणी क्रिया….. पाक्षिक प्रतिक्रमण में अनगारधर्मामृत में बताया है कि ‘‘परे पुनर्व्रतारोपणा-दिविषयाश्चत्वार: प्रतिक्रमणा: स्यु: किंविशिष्टा:! वृहन्मध्यसूरि-भक्तिद्वयोज्झिता:।’’ अर्थात् व्रतारोपणादि चार प्रतिक्रमणों में, वृहदाचार्य ‘सिद्धगुणस्तुतिनिरता’ से लेकर मध्याचार्यभक्ति ‘देस कुल जाइसुद्धा’ सहित छेदोवट्ठावणं होउ मज्झं, पर्यंत दो भक्तियों को छोड़कर शेष सब पाक्षिक प्रतिक्रमणविधि ही करें। अंतर केवल इतना ही है कि प्रयोग विधि में -पाक्षिक प्रतिक्रमण…