जम्मू वृक्ष का चित्र
जम्मू वृक्ष का चित्र
उत्तर कुरु का वर्णन मंदर पर्वत के उत्तर, नील पर्वत के दक्षिण, माल्यवान् गजदंत के पश्चिम और गंधमादन के पूर्व में सीता नदी के दोनों किनारों पर ‘भोगभूमि’ इस प्रकार से विख्यात रमणीय उत्तरकुरु नामक क्षेत्र है। इसका संपूर्ण वर्णन देवकुरु के वर्णन के समान है।
शाल्मली वृक्ष का वर्णन देवकुरु के भीतर निषधपर्वत के उत्तर पार्श्व भाग में विद्युतप्रभ पर्वत से पूर्व दिशा में, सीतोदा नदी की पश्चिम दिशा में और सुमेरु पर्वत के नैऋत्य भाग में रमणीय रजतमय शाल्मलि वृक्ष का स्थल बतलाया गया है। इस स्थल के विस्तार आदि का वर्णन आगे कहे हुए ‘जंबूवृक्ष’ के सदृश समझना…
देवकुरु का वर्णन मंदर पर्वत के दक्षिण भाग में स्थित भद्रसाल वन वेदी से दक्षिण में, निषध से उत्तर, विद्युत्प्रभ के पूर्व और सौमनस के पश्चिम भाग में सीतोदा के पूर्व-पश्चिम किनारों पर ‘देवकुरु’ स्थित है। निषध पर्वत की वन वेदी के पास में उसकी पूर्व-पश्चिम लंबाई ५३००० योजन प्रमाण कही गई है। मेरु की…
सीता के पाँच द्रहों का वर्णन यमक पर्वतों के आगे ५०० योजन जाकर पाँच द्रह हैं। प्रत्येक द्रह पाँच सौ योजन के अंतराल से हैं इनके नाम नील, उत्तरकुरु, चंद्र, ऐरावत और माल्यवान् हैं। ये द्रह सीतोदा के द्रह सदृश हैं। अंतिम द्रह से २०९२-२/१९ योजन दक्षिण भाग में उत्तम वेदी है। यह वेदी पूर्व-पश्चिम…
सीता नदी का वर्णन नील पर्वत के केसरी नामक सरोवर के दक्षिण द्वार से सीता नामक उत्तम नदी निकलती है। यह भी सीतोदा के समान ही सीता कुण्ड में गिरकर दक्षिण मुख होती हुई दो कोस प्रमाण से मेरु पर्वत को छोड़कर पूर्व की ओर मुड़ जाती है और माल्यवंत गजदंत पर्वत की दक्षिण मुख…
आठ दिग्गज पर्वतों का वर्णन भद्रसाल वन के भीतर सीतोदा नदी के पूर्व पश्चिम भाग में स्वस्तिक और अंजन नामक पर्वत हैं। ये दोनों दिग्गज पर्वत मेरु पर्वत के दक्षिण में हैं। सीतोदा महानदी के दक्षिण तट पर कुमुद और उत्तर तट पर पलास नामक दो पर्वत हैं। ये दोनों पर्वत मेरु के पश्चिम में…
कांचन शैलों का वर्णन प्रत्येक सरोवर के पूर्व और पश्चिम दिग्भाग में १०० योजन ऊँचे दस-दस कांचन पर्वत हैंं। ये पर्वत मूल में १०० योजन मध्य में ७५ योजन एवं शिखरतल में ५० योजन प्रमाण हैं। ये कांचन पर्वत मूल में व ऊपर चार तोरण वेदियों, वन उपवनों और पुष्करिणियों से रमणीय है। इन पर…
सीतोदा नदी के अंतर्गत पाँच सरोवरों का वर्णन यमक और मेघगिरी से आगे ५०० योजन जाकर पाँच द्रह हैं इनमें प्रत्येक के बीच ५०० योजन का अंतराल है। ये प्रत्येक द्रह १००० योजन प्रमाण उत्तर दक्षिण, लंबे ५०० योजन चौड़े और १० योजन गहरे हैं। इन पाँच सरोवरों के नाम क्रम से निषध, देवकुरु, सर,…
सीतोदा नदी का वर्णन निषध पर्वत के तिगिंछद्रह के उत्तर द्वार से सीतोदा महानदी निकलती है यह नदी उत्तर मुख होकर ७४२१ योजन से कुछ अधिक निषधपर्वत के ऊपर जाती है। पश्चात् पर्वत के नीचे सीतोदा कुण्ड में गिरकर उसके उत्तर तोरण द्वार से निकलकर उत्तर मार्ग से मेरु पर्वत पर्यंत जाती है। पुन: मेरु…