कृतिकर्म विधि
कृतिकर्म विधि……. श्रुतज्ञान द्वादशांगरूप है। इसे ग्यारह अंग और चौदह पूर्व नाम से भी जानते हैं। अथवा अंग और अंगबाह्य के नाम से श्रुतज्ञान के मूल में दो भेद करके अंग के १२ भेद और अंगबाह्य के १४ भेद किए हैं। कहीं पर अंगश्रुत और अनंगश्रुत ऐसी भी दो नाम कहे हैं। किन्हीं ग्रंथों में…