9.21‘‘अणियोगद्दारेसु वा।’’
‘‘अणियोगद्दारेसु वा।’’ अमृतवर्षिणी टीका— कृतिवेदनादिचतुा\वशत्यनियोगद्वारेषु।१’’ षट्खण्डागम पुस्तक-९ में २४ अनुयोगद्वार का वर्णन देखिए— अब इस वेदनाखण्ड नामक ग्रंथ का संबंध प्रतिपादन करने हेतु श्री भूतबली आचार्य के द्वारा उत्तर सूत्र कहा जाता है- सूत्रार्थ- आग्रायणीय पूर्व की पंचम वस्तु के चतुर्थ प्राभृत का नाम कर्मप्रकृति है। उसमें ये चौबीस अनुयोगद्वार ज्ञातव्य हैं-कृति, वेदना, स्पर्श, कर्म,…